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________________ कविवर त्रिभुवनकोति भाया । भवदत्त के उपदेश से भवदेव ने भो वैराग्य धारण कर लिये लेकिन उपका मन अपनी स्त्री की अोर से नहीं हट सका । स्त्री ने मुनि से अपनी व्यथा कही । इस अवसर पर नारी के प्रति कवि ने वे ही विचार प्रकट किये हैं जो अन्य जन कवियों इमा रहित प्रति लोभणी, धर्म न जाणि सार । दयामणी दीसि सही, रूठी कर अपार ||१२॥ नारी रूप न राचीय, गुण राचर सहु कोइ । जे नर नारी मोहीया, ते नवि जाणि लोय ।।१३।। भवदत्त ने तपस्या करके स्वर्ग प्राप्त किया और फिर वहां से पुण्डरोक नगरी के राजा के यहां सागरचन्द्र नामक राजकुमार हमा। तथा भवदेव ने बीतशोका नगरी के शिवकुमार राजकुमार के रूप में जन्म लिया । राजा के नाम पर महापदम था । मवदेव ने शास्त्रों का ज्ञान अर्जन किया । एक बार संयोगवश उसी नगर में एक प्रवधिज्ञाती मुनि का आगमन हुआ। सभी लोग उनके दर्शनार्थ गये । शिव. कुमार को मुनि को देखते ही पूर्व भव का स्मरण हो गया। इससे उसे वैराग्य हो गया और घोर तपस्या करने के पश्चात् वह मृत्यु के पश्चात् छठे स्वर्ग में विद्युन्माली नामक देव हुमा । सागरचन्द्र को भी घोर तपस्मा के पश्चात् तीसरे स्वर्ग की प्रारित हुई । वही विद्युन्माली सात दिन पश्चात् राजगृह नगर के से अहंदास के जम्बूकुमार नाम से पुत्र रूप में उत्पन्न हुप्रा । मगध देश राजग्रहि अहंदाप्त घिर सार । जिनमती कूलि अतिरि जंबूकूमर भवतार ।।३।। जम्बू कुमार की माता का नाम जिनमति था जो प्रत्यधिक लावन्यवती शीलवती एवं पीनपयोधरा थी। एक रात्रि को जिनमति ने पांच स्वप्न देखे जिनका तिम्न प्रकार फल बतलाया गया-- जंबू फन्न देख्य उ सम्हेव नारि, पुत्र हसि घिर जंबूकुमार । १०॥ निरधूम अग्नि देख्य उ तम्हे सुणउ क्षय करसि सवे करम महंतणु । शाल क्षेत्र देख्य अभिराम, लक्ष्मीपति होसि गुणधाम ॥११।। जल पूरयु सर दीठलं सार, पाप तणु करसि परिहार ॥ रत्नाकार देख्यु तिणिवार. जन बोधी भव तरसि पार ॥१२॥
SR No.090269
Book TitleMahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages359
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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