________________
२८२
जोवन परिचय एवं मूल्यांकन
जम्बूकुमार का जन्म प्राण शुक्ला अष्टमी के शुभ दिन हुमा । सारे नगर में उत्सव मनाये गये । बाजे बाजे । मन्दिरों में पूजा की गयी । कवि ने जन्मोत्सव का विस्तृत वर्णन किया है
तृत करि करि नृत्यंगनाए, गीत गाइ रमाल । धाजित वाजि अनि घणाए, होल ददामा कमाल 11६।।
तिवली तर मादल घणाएं, भेर वाजि वर चग । इणी परिजन महोत्सवाए, थेष्ठि घिरहुउ रंग ।।७।।
बचपन में हो जम्बुकुमार ने विविध शास्त्र, एव विद्याएं सीखली तथा कला में वह पारगत हो गया । जवृकुमार की सुन्दरता देखते ही बनती थी । जो भी कुमारी उसे देखती वही उमको चाहना करने लगती तथा माता-पिता के भाग्य का सराहना करती कि जिनके यहां ऐसा पुत्ररत्न उत्पन्न हुपा है । उमी नगर में सागरदत्त, घनदत्त, वैश्रवण एवं वणिकदत्त श्रेष्ठि रत्न थे । चारों के ही एक एक कन्या थी जिनके नाम पद्मावती, कनकधी, विनयश्री एवं लक्ष्मी थी। चारों ही सुन्दरता की खान थी
च्यार कान्या अछि प्रति भलीए, रूप सोभागनी खाणि । पृथु पीनपयोषरा. बोलि अमृन वाणि ।। ३२।। कटियंत्र अति रूडीए मृग नयणी गुणवंत ।
अक्षय तृतीया के दिन जम्बुकुमार का विवाह इन चारों कन्यानों से निधिचत हो गया। बमन्त ऋतु आने पर सजा श्रेणिक, नगर सेठ जम्बुकुमार एवं उनकी होने वाली पस्नियां सभी वन क्रीडा के लिये गये। उस समय राजा थेणिक का हायो बिगड गया और कराल काल बन कर चारों ओर उत्पात करने लगा। हाथी ने अनेक वृक्षों को तोड़ डाला, फूलों को रोद डाला । उसको देख कर सभी प्राण बचाकर भागने लगे। लेकिन जम्बुकुमार ने उमे महज ही वण में कर लिया। इससे उसकी वीरता को चारों ओर प्रशंसा होने लगी।
कुछ समय पश्चात् एक विद्याधर राजा श्रेणिक के पास प्राया तथा कहने लगा कि भविष्य वाणी के अनुसार केरल देश के राजा की राजकुमारी के प्राप पति होंगे । लेकिन हंसी के राजा ने उस राजकुमारी को लेने के लिये उस पर चढ़ाई