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जीवन परिचय एवं मूल्यांकन
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कल्पवल्ली मझार संवत सोलमहोत्तरी । रास रचत मनोहारि, रिद्धि हयो संघह परि ।।५।।
जीवंधर मुनि तप करी, पहुप्तु शिवपद ठाम ।
विमुवन कीरति एम वीनवर, देमो तुम्ह गुणग्राम ॥५४।। इति जीवंधर रास समाप्तः
२. जम्यूस्वामी रास
कविवर त्रिभुवनकोति को यह दूसरी काग्य कृति है जो राजस्थान के शास्त्र भण्डारों में उपलब्ध हुई है । प्रस्तुत कृति भी उसी गुटके में लिपि बस है जिसमें कवि की प्रथम कृति जीवघर रास संग्रहीत है। जम्बूस्वामी रास उसकी संवत १६२५ की रचना है अर्थात् प्रथम कृति के १९ वर्ष पश्चात् सन्दोबस की हुई है। १६ वर्ष की अवधि में त्रिभुवनकोति ने साहित्य जगत को और कौन-कौन सी कृतियां भेंट की इस विषय में विशेष खोज की आवश्यकता है। क्योंकि कोई भी कवि इतने लम्बे समय तक चुपचाप नहीं बैठ सकता। लेकिन लेखक द्वारा राजस्थान के बन ग्रन्थ भण्डारों के जो विस्तृत खोज की है उसमें भी अभी तक कवि की दो कृतियां ही मिल सकी है।
जम्बूस्वामी रास एक प्रबन्ध काव्य है जिसमे जैन धर्म के अन्तिम केवली बम्बूस्वामी का चरित्र निबस है। पूरा काध्य रास शैली में लिखा हुपा है तथा भाषा एवं शैली की दृष्टि से जीवंधर रास से जम्बूस्वामी रास अधिक निखरा हुमा है। प्रस्तुत रास दूहा, चउपई एवं विभिन्न रागों में निबद्ध है। कबा का विभाजन सगों में नहीं हुआ है किन्तु उसमें भी उसी प्राचीन शैली को अपनाया गया है ।
जम्बू स्वामी के वर्तमान जीवन का वर्णन करने के पूर्व उनके पूर्व भवों का वर्णन किया गया है । कवि यदि पूर्व भवों के वर्णन को छोड मी जाता तो भी काव्य की गरिमा में कोई विशेष अन्तर नहीं प्राता । लेकिन क्योंकि प्राय प्रत्येक जैन काव्य में नायक के वर्तमान के साथ-साथ पूर्व भवों के वर्णन करने की परम्परा रही है इसलिये कवि ने उस परम्परा से अपने आपको अलग नहीं कर सका है।