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जीवन परिचय एवं मूल्यांकन “विनय किया-बोनम्यु २उस, उसका, उसकी-विणी, तेह, तेहनी
शब्दों के पागे 'नी' 'नु' भगा कर उनका प्रयोग किया गया है । जैसे कर्मनि, पुत्रनु, नाथनु, पुषीनु इत्यादि ।
इस प्रकार जीवंधर रास १७वीं शताब्दि के प्रथम पाव में रचे जाने वाले काव्यों का प्रतिनिधि काव्य है जिसमें तत्कालीन शैली के सभी रूप देखे जा सकते हैं। राजस्थानी, गुजराती एवं हिन्दी इन तीनों का मिश्रित रूप कहीं देखना हो तो हम त्रिमुवन कीर्ति के रास कामों में देख सकते हैं।
रास का प्रादि प्रात माम निम्न प्रकार है
मावि भाग
आदि विषवर प्रादि विषवर प्रथम के नाम मुग मादि ने अवता , जुग प्रादि भणसरोय दीक्षा । जुग प्रादि जे प्रामीमा केबल ज्ञान सणीय, शिक्षा युग प्रादि जिणि प्रगटोयु । घम्माधर्म विचार तास चरण प्रणमी. रच रास जीवंधर सार । अजित पादि सीर्थकरा, जे मछि त्रिणिनि पीस । कर्म कठोर सवे खपी, हया ते मुक्तिना ईश ।।२।। केवस वाणी सरसती, भगवती करू पसाउ । निर्मल मति मुझ पापयो, प्रणमु सुम्ह घी पाउ ।।३।। सिद्ध प्राचार्य जेहवा, उपाध्याय वली साधु ||४|| निज निज मुणे अलंकरा, ते मुझ देज्यो साधु । थी उदग्रसेन सूरी पाए नमी, रचर कक्ति विशाल । जीवंधर मुनि स्वामिनु, मौरुप तणु गुणमाल ||५||
१. सरसंघर जाई वोनब्यु । २, तिमी नगरी वाणिज्य वसइ, गंधोत्कट तेह नाम ।
सुनंदा स्त्री तेहनी, मूड पुत्र जण ताम ॥३७।।