SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 280
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २७६ · कविवर त्रिभुवनकोति जोवंधर को देख कर गुणमाला उसके विरह में खान-पान स्नान पादि सभी भूल जाती है मंदिर पायी ताम, स्नान मज्जन नबि धरहए । रजनी न धरइ नीद्र, दिवस भोज नवि करदए ।॥३७॥ न घर सार 'गार, आभूषण ते नवि धरिए । नवि यामद काय निवृत्ति, शीतोपचार घणा करईए ।।३।। इस तरह रास के सभी वर्णम सुन्दर है । तथापि यह एक कथात्मक काव्य है लेकिन शैली में आकर्षण है तथा वह प्रभावयुक्त है। छन्दों के परिवर्तन से राम के अध्ययन में रोचकता आती है। यह एक गेय काव्य है जिसे मंच पर गाया जा सकता है 1 कवि का भी रास काव्य लिखने का संभवत: यही उद्देश्य रहा है । रास में दूहा, चउपा एवं वस्तु बंध छन्द के अतिरिक्त ढाल यशोधरनी, ढान आणदानी, ढाल सुदरीनी, ढाल साहेलोनी, राग घन्पासी, राग राजवल्लभ, दाल सखीनी, दाल सहीनी-राग गुडी, ढाल नौरसूपानी, दाल भामाहूलीनी, ढाल वणजार रानी का उपयोग हुमा है । इस काव्य में स्वर्ण मुद्रा के लिये 'दीनार' शब्द का प्रयोग हुआ है । ' इसी तरह अन्य शब्दों का प्रयोग निम्न प्रकार हुमा हैमाया-प्राव्युरे (२३।१३२) प्रावी (२५) पाया-प्रामी (३६) प्रामीय "तुम्हारी--तुम्ह पंच दीनार दीधा मन रंग, भोग इछा तमह मन रंग । मस्तंगत प्राभ्यु तब सूर, कामीनि सुन्न करवा पूर ।।१०।। २. पुरुष न आयु सामार ३, राय तणु प्रामी सनमान ॥३१॥ प्रामीय शिष्या अति मनोहार ४. दुर्बल दीसह तुम्ह काय ।।२।११३३
SR No.090269
Book TitleMahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages359
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy