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________________ २७२ काववर त्रिभुवन कत्ति है जो १६ वी १७ वी शताब्दी में साहित्य निर्माण का प्रमुख केन्द्र था। २. कृष्णदास ने भी कल्पवल्ली नगर में ही मुनिसुत्रत पुराण की रचना की थी। जीवंधर रास प्रबन्ध काल्प है। जीवंधर उसका नायक है । जीबंधर राजपुत्र है लेकिन उनका जन्म शमशान में होता है। उसका लालन पालन उसकी स्वयं माता द्वारा न होकर दूसरी महिला द्वारा होता है । युवा होने पर जीवघर पराक्रम के अनेक कार्य करता है । अन्त में अपना राज्य प्राप्त करने में भी सफल होता है । काफी समय तक राज्य सुख भोगने के पश्चात् वह वैराग्य धारण करता है और प्रन्स में कंधल्य प्राप्त करके निवांण झा यक बन आता है । पूरी कथा निम्न प्रकार है कथा भाग एक बार जब महाधीर राजगृह प्राये तो पाये तो राजा श्रेणिक अपने प्रजाजनों के साथ उनके दर्शनार्थ गये । मार्ग में जब राजा श्रेणिक ने एक गुफा में समाघिस्य मुनि के सम्बन्ध में जानना चाहा तो भगवान महावीर ने उस मुनि को जीवंधर कहा तथा उसके जीवन का निम्न प्रकार वर्णन किया--- जम्बूद्वीप में भरत क्षेत्र के हेमागढ़ देश की राजधानी थी राजपुरी नगरी । उसके राजा का नाम सत्संघर एवं राणी का नाम विजया था। उनके दो मन्त्री थे। एक कालागार एवं दूसरा धर्मदस । एक बार वहाँ एक अवधिमानी मुनि का प्रागमन हुया । वे सब उनकी वंदना के लिए गये मुनि ने सभी को नियम दिये । एक भारवाह ने भी मुनि से अन देने की याचना की। मुनि धी उसे पूर्णिमा के दिन ब्रह्मचर्य व्रत पालन का नियम दिया। उसी नगर में दो गैश्याएं थी एक पद्मावती एवं दूसरी देव दत्ता थी । एक दिन जब वह लकड़ी का भारा लेकर जा रहा था तो पद्मावती उसे देखकर क्रोधित हो गयो धौर उस पर थू के दिया । तथा कहा कि उसके शरीर का मोल पांच दीनार है । भारवाह गरीब था लेकिन वेश्या के कहने को सहन नहीं कर सका । उसने पांच दीनारों का संग्रह किया और वेश्या के पास पला गया । उस दिन पूर्णिमा थी इसलिये उसका लिया हुया व्रत भंग हो गया। २. कल्पवल्ली मझार संवत सोलछहोत्तरि । राम रच्यउ मनोहार रिद्ध हयो संघहरि ।।
SR No.090269
Book TitleMahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages359
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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