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जाबन परिचय एव मल्याकन
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उक्त परिचय से ज्ञात होता है कि त्रिभुवनकोति उदयसेन के पश्चाद भट्टारका गादी पर सुशाभित हुए थे।
त्रिभुवनकीति की प्रभा तक दो कृतियां उपलब्ध हुई है। ये दोनों ही हिन्दी की रचनायें हैं । निमबनकीति के नाम से एक और संस्कृत रचना थ तस्कंध पूजा दि. जन मन्दिर सम्भवनाथ उदयपुर के ग्रन्थ भण्डार में संग्रहीत है । पूजा बहुत छोटो है लेकिन यह इन्हीं त्रिभुवनकीति की है अथवा अन्य किसी त्रिभुवनकीति की इसके बारे में कोई निश्चित जानकारी नहीं मिलती।
त्रिभूवनकीति भट्टारक ये । साहित्य एवं संस्कृति के प्रचार प्रसार के लिए वे बराबर सिंहार करते रहते थे । गुजरात, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, उसर प्रदेश एवं देहली भादि प्रदेश इनके विहार के मुख्य प्रदेश थे । यही कारण है इनके कास्यों की भाषा पूर्णत: राजस्थानी अथवा गुजराती न होकर गुजराती प्रभादित राजस्थानी है।
मावन्धर रास
त्रिभूवनकीति की प्रथम रचना "जीवंधर स" है। यह एक प्रबन्ध काग्य है जिसमें 'जीबंधर' के जीवन को प्रस्तुत किया गया है। जीवघर का जीवन जैन फबियों को बहुत प्रिय रहा है । अपभ्रंश, संस्कृत एवं हिन्दी के कितने ही कवियों ने उसके जीवन को अपने अपने काम में शन्दोबद्ध किया है । ऐसे कृतियों में महाकवि हरिचन्द्र का जीवंघरचम्पू, भट्टार के शुभचन्द्र का जीवंधर चरित्र, महाकवि राघू का जीवघर चरिउ (अपभ्रंश) प्र. जिन दास का जीवघर रात, भट्टारक यश कीति का जीवंधर प्रबन्ध, दौलतराम कासलीवाव का जीवथर चरित्र (समी हिन्धी) के नाम उल्लेखनीय है । त्रिभुवन कीति का जीवंधर रास भी उसी 'खला' में निबद्ध एक प्रबन्ध काध्य है।
जीवन्धर रास संवत १६०६ की रचना है।' रचना स्थान कल्पवल्ली मगर
१. श्री कल्पवल्लीनगरे गरिष्ठ, श्रीबह्मचारीश्वर एव कृष्णः । कंठावलम्यूजितपुरमाल. प्रवर्द्धमानो हितमाततानि ।। ६८ ।।
मुनिसुव्रत पुराम