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________________ सुरसुन्दरी का उत्तर विवाह श्रीपाल रास हो सुदरि बोली सुणि तात, तुम्हस्यो कहुं चित्त की बात । नागछत्र पुर राजई, हो तिहस्यों मेरो करिजे व्याह । घणी बात कहणी नहीं, हो तहि उपरि मेरो बहु भाउ ।।स। १५८ हो सूणि राजा मोराउ बुलाइ, सुरसुंदरि तसु दोन्ही व्याहि । प्रस्व हस्ती बढ्न बाइ हो वस्त्र पटंबर बहु प्राभवं । दासी दास दा घणा हो, मणि माणिक जड्या सोवर्ण ॥ रास | १६ | I मैनासुन्दरी से इच्छित वर के लिये पूछना हो एकै दिन मँणासुंदरि आठ द्रश्य ले थाली भरी । जिणवर पूजण सा चली हो जिण गुरू मन जिणवाणी गुरुमुख सुणी, हो हरष नासु के श्रंगिन भाइ || राम । १७।० मैनासुंदरी का उत्तर श्राण्यो वरां पिताने राजा गंधोदक सुभ देइ | बंदि 1 २०३ हो फूलमाल गंधोदक लेई, लेहु पिता सुत श्रासिका हो लह ग्रासिका भगतियों हो मन वच काय बहुत मानादि ||रास ! १८ ॥ भाइ । हो लघु पुत्रस्य जप राउ, हौ व्याहौ वर जाको हो सुता बात कहि मन हरणी, हो मेणासुंदरी जंपं तात । वचन जुगता तुम्ह कला हो कर्म लिएको सो मिलिसी कंस ||रास | १६३८ हो सुभ अरू अशुभ कर्म के बंधि, घरि ले जाइ जीव ने कंधि । रावण हारो को नहीं हो पिला मात वर्ध फुल कन्या तहिनं वरे करें स्नेह जिम देहरू छ सु माँ । |रास || २०१ हो जीव कर्म के भयो सुभाइ कर्म ग्रन्थ्यो चहुं गति जाइ । जीव सौ बल को नहीं ही जीव विचारै प्रपौ जाए । सकल विकलप सह तभी हो निर्जर कर्म मुकति पक्ष होह ||२१||
SR No.090269
Book TitleMahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages359
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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