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महाकवि ब्रह्म रायमल्ल
हो देव शास्त्र गुरु बंबा भाइ, बुधि होइ तुम तनी पसा | कुमति कसे सन उपजी, हो मैना सुंदरी शुभ श्रीपाल । सिद्ध चक्र व सेवियो, हो कोडि गुणी करि पूज विसाय ||७||
हो जंबू दीप प्रतिकरं विकास, दीप असंख्या फिरिया पास लूण समदस्यों नेढीयो हो जोजन लाख वर्णो विस्तार | मेरू मधि प्रति सोभिता हो भोग भूमि गिरि नदी पार ||
राजा पहुपाल एवं उनका परिवार
हो दक्षण दिशा मेरू की जाणि, भग्य क्षेत्र अति नीकं दाणि । देश ग्राम पट्टण घणा, हो तिह में मालव देरा विशाल | उजेणो नग्री भली, राज करें राजा पुहपाल ||रास ||९||
होट्टतीया तस सुंदर माल सामोद्रिक गुण वणी विशाल । रुप अपरा सारिखी हो पुत्री दोइ तासु घरि जाणि । सुरदार जेही सही हो मँणासुंदरि शील मुजाणि ॥ रास ||१०||
हो एक दिन राजा गुहपाल, सुर सुंदरी घाली सोम विप्र ग्रागँ भने हो देव शास्त्र गुरू ल पछि पुराण भिध्यात का, हो जह थे पट् काया को
चटसाल ।
न भेद । रास ।। ११
हो तर्क शास्त्र पढिया बहु भाय पढत पढन व्याकरण जाय । समरित सहित बहु भण्या हो तहि ये होह जीव को घात । मत मिध्यात पदेश दे, हो जाएं नहीं जैनि की बात || रास।।१२।।
हो लडो मेणासुंदरि जाणि, देव शास्त्र गुरू रास्ते मान । समपर मुनि श्रागे भर्ण हो कर्म ग्राट तंशो प्रस्ताल | भाव भेद जाण्या सर्व, हो श्रास्रय क्रमं जीवन काल || रास ।। १३ । सुरसुंदरी से इच्छित वर के बारे में
पूछना
हो एक दिन राजा पुहपाल, सुर सुंदरी साज्यी बनवाल । देख विचार चित में, हो पुत्रीयों जये करि भाव । मन वांछित हमस्यौ कहो, हो सो तुमनं हु व्याहे राउ |रास | १॥