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१५.
महाग पद मायाला
तुम छो कुन तुम्हारो नाम, दीसो चतुर केन थित ठांम । जिह कारन आई हम भणी, ते सह बात कहो मापणी ।।८४॥ बोली कुमति जोडीया हाथ. बीनती सुनो हमारी नाथ ।। सूरग तंणीहुं देवांगना, तेरा सुजस सुन्या हम घणां ।।८।। मेरा मन बहु उपनो भाव, भली बात देखन को चाव । छोर देव प्राई तुम थोन, तुम देखत सुख पायो जान ॥८६।।
मन राजा तसु सांभली बात, उपनो हरष विकास्यो गात । प्रगन संग लुणी गल जाई, मन राजा वोलो हस भाई ।।७।।
दीठी त्रीया धनी अवलोई, तुम सम रूपन दीठो कोई । सुदरी हम पे करो पसाव रालो बोल हमारो भाव ।।८।।
करो हमारो अंगीकार, पटरानी सुख भुजो सार । वरात विभुती हमारं धनो, तिहकी सुरनु खसमणी ।।८८ ॥ बोली कुमति सुनो मन जोन, कह्यो हमारो अंगीकार । पटतो हम तुम घर बा सोई, होई विधना लिख्यो न मेटै कोई IItail
बंध्यो पुत्र विवेक कुमार, ते लोडो ल्यावौ मती बार । बिह धरी बंदी खानो होई, भलो मनाव तिहां न कोई ||११||
मन बोल्यो मत करो विषाद, यह तुमने दीन्हों परसाद । साकुल काट होयो मुकलाई, तषिन गयो मात पं जाई ।।२।।
कामी पुरष ज कोई होई. कामनी कहो न मेटै कोई । तिह को छांदो छात्र धनो, इदह श्रुभ काह कामी नर तनो ॥१३॥
पायो निचे पटन ठाद, मात चेतना बंद्या पाव । कह्यो पालो सह व्योहार, सुखसु रहे विवेककुमार ||१४||
वस्तु बंध- देख पुन निवृत्य सुकमास, बहुत हरष उछाह कीन्हो ।
कीमो उपगारज चेतना, तासु बहुत सनमांन दोनो ।