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परमहल चौपई
मिथ्या दरसन मंत्री तास, सेवक पाठ करम को वास । क्रोध मान डंभ परपंच, लोभ राहत तिहा नीवसे पंच ।।७२॥
पंद्रह प्रमाद मंत्र तसु तणां, तिह सु मोह कर रंग धनां । रात दीवस ते सेवा कर, मोह तनी बहु रख्या करें ।।७।।
सातों विसन सुभ्र गती राज, जाने नही काज अकाज । निगुणां सघि सभा असमान, सौभै दुरगति सिंघासन धान ॥७४।।
चवर ढल रित विपरत वीसाल, छिद्र पुरोहीत पठतु कुस्याल । कूड कपट नम कोटवाल, पाखंडी पोल्या रषवाल ॥७॥
तिहको कुकवी रमोईदार, चोबीसु परिग्रह भंडार । कंदल कलह अन्न कोठार, नंदी देहह बोल अपार ।।७।।
प्रसत छागल्यो पावरोण, चोर खास तास वरचौर । महाकुसील पयादा तास, पाप नन में तिह को वास ।।७७।।
परमह सवल कमाई पचीस, पचपन मोह तनो मनसोस । ऐसो पाप नन को वास, भली वस्त को तोहां विनास ॥७८ ।।
निसचे नग्र पुत्र चेतना, तीह की बात सुनो भवीजना । निवृत्य पुत्र की वीनती फरी, तव चनना बात मन धरी ||६||
जहा सुमन राजा छ वली, तिल कुमति माप मोकली। दीन्ही सीगन्त्र बहुत नीरतार, दीजे वेग विबेक छुड़ाई
तुमच्छो कुमति ठगोरी प्रसी, मन राजा दीदै पघलसी । सोही कोज्यो चित विचार, छुट बेग विवेक कुमार ।।८१६॥
लीन्ही सीख कुलस्त तब गई, मन द्वारए आई ठाढी Hई । पोल्या नबह दीनो मान, प्रवृत मन राजा को थान ।।२।।
हाव भाव तीहां कोया पना, बहुतक चिरत कामनी तना । देखत मन प्रती भयो विकास, बीनो करी बहु चूड तास ।।३।।