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________________ महाकवि ब्रह्म रायमल्ल कार सके और जब हिन्दी साहित्य का क्रमबद्ध इतिहास लिखा गया तब जन भण्डारों में संग्रहीत विशाल हिन्दी साहित्य को 'पपन्द्र शाम में मागिन् । यह लिख कर साहित्य की परिधि से बाहर निकाल दिया कि वह केवल धार्मिक साहित्य है और उसमें साहित्यिक तत्व विद्यमान नहीं है। रामचन्द्र शुक्ल की इस एक पंक्ति ने जैन विद्वानों द्वारा निर्मित हिन्दी साहित्य का बड़ा भारी अहित किया । उसका फल माज भी उसे भुगतना पड़ रहा है। समय ने पल्टा लाया । जैन ग्रन्थागारों के ताले खुलने लगे तथा विद्वानों का इस ओर ध्यान जाने लगा । शनैः शनैः जनाचार्यों का विशाल साहित्य बाहर पाने लगा। सर्वप्रथम अपना साहित्य पर विद्वानों का ध्यान गया और धनपाल के 'भविसयत्तचरिउ' की पाण्डुलिपि प्राप्त होते ही साहित्यिक जगत में हलचल मच गयी क्योंकि इसके पूर्व हिन्दी के विद्वानों में समूचे अपभ्रश साहित्य को ही लुप्त प्रायः साहित्य घोषित कर दिया था। अपभ्रा के महाकाव्य पउमचरिउ (स्वयंभु) रिटुरोमिचरिउ, महागुराण, जम्बूसामिचरिउ जैसे महाकाव्यों का जब पता चला तो महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने रामचन्द्र शुक्ल के विरुद्ध झण्डे गाड़ दिये और महाकवि स्वयंभू के पदमचरिउ को हिन्दी का प्रथम महाकाव्य घोषित कर दिया। इसके पश्चात् और भी विद्वानों का उस ओर ध्यान गया और उन्होंने जैन कवियों के निर्मित काव्यों का मूल्यांकन करके उन्हें हिन्दी के श्रेष्ठ महाकाव्यों को कोटि में ला बिठाया । ऐसे विद्वानों में स्वर्गीय डा. वासुदेव शरण अग्रवाल, स्वर्गीय डा. माता प्रसाद गुप्त, डा रामसिंह तोमर, एवं डा० हजारीप्रसाद द्विवेदी के नाम उल्लेखनीय हैं। हिन्दी के वर्तमान मूर्धन्य विद्वानों में डा. हजारी प्रसाद द्विवेदी का नाम इस दिशा में सर्वाधिक उल्लेखनीय है जिन्होंने अपनी पुस्तक "हिन्दी साहित्य का प्रादिकाल" में हिन्दी जैन साहित्य के विषय में जो पंक्तियां लिखी हैं वे निम्न प्रकार है "इधर जैन अपभ्रश चरित काव्यों की जो विपुल सामग्री उपलब्ध हुई है वह सिर्फ धार्मिक मम्प्रदाय के मुहर लगाने मात्र में अलग कर दी जाने योग्य नहीं है। स्वयम्भू, चतुर्मुख, पुष्पदन्त और धनपाल जैसे कवि केवल जैन होने के कारण ही कान्यक्षेत्र से बाहर नहीं चले जाते । धार्मिक साहित्य होने मात्र से कोई रचना साहित्य कोटि से अलग नहीं की जा सकती। यदि ऐसा समझा जाना लगे तो तुलसीदास का रामचरितमानस भी साहित्य क्षेत्र में अविवेच्य हो जाएगा और जायसी का पद्मावत भी साहित्य-सीमा के भीतर नहीं घुस राकेगा।" श्री महावीर क्षेत्र के द्वारा राजस्थान के जैन ग्रन्धागारों के मुचीकरण कार्य से अपनश एवं हिन्दी कृतियों को प्रकाश में लाने में बहुत योग मिला। इससे . १. हिन्दी साहित्य का प्रादिकाल-पृष्ठ ११ प्रथम संस्करण १६५.२
SR No.090269
Book TitleMahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages359
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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