________________
भविष्यदत्त चौपई
१७९
सजन लोग बहु संतोषिया, दुर्जन का मन काला भया। दिया संबोल सेठ बहु भाइ, कामणि गीत वधावा गाइ ॥३६७।।
चाल्या था जे वाण्या साथि, कमलश्री तसु घुझे बात । बंधुदत्त को बहु डरं कर, समाचार नवि को उचर ॥३६८।।
कमली का पुनः प्रायिका के पास जाना
कमलथी मनि भयो गुमान, गव बेगि जिका के धानि । नेत्र असरपात बहु कर, पुत्र विजोग दुख प्रति करे ।।३६॥
नमसकार करि बुझ बात, पुत्र हमागे न पायो मात । राम देह अधिक अकुलाइ, समाचार कोन कहै माय ।।३७०।।
अजिफा होली मूणि सूदरि, बेटा को तू ना हर करी । मुनिवर अवधि दिवस जो कही, पुत्र तुम्हारी माती सही ॥७॥
पछिम दिस जे उगे भाण, मुनिवर भूट न कर बखांग । कर्म जोगी परबत पणि फिर, मुनिवर मुख अठन नीस ॥३७२।।
अजिका बचन ब्रह्यो संतोष, जैसो मुनिवर पायो मोख । सुणी बात जे अर्जिका कही, कमलश्री निज थानकि गई ॥३७३।।
बंधूदत्त मिलिबा पाइयो, कमलश्री का पद वंदियो । कुसल नेम सहु बुझी सार, जैसो पुत्र मात व्यौहार ।।३७४।।
कमलश्री बुझ ये मान, भवसदत्त छाडिउ कहि धान 1 समाचार सूत साचा भाँ, जिम संसौ भार्ज मन तणो ।।३७५||
बंधुदत्त बोल्यो सुणि भाइ, कुसल क्षेम तिष्टं तहि यार । धन संपति तहि बहुली सही, बेगो तुमसे मिलसी सही ॥३७६ ।। हमने जैसी देखो इहां, तसो मुत ने जांणौ तहां । कमलभी सुणि बहु सुख भयो, बंधुदत्त निज मन्दिर गमौ ॥३७७।।