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________________ १७८ महाकवि ब्रह्म रायमल्ल मौसाण-रूपस्यौ बिनती करं, तुम कोप साथा सब मरं । तुम सतर्वती निर्मल भाउ, हम उपरि करि छमा पसाय ॥३५७।। जे पछिम दिस ऊगै भान, को नविभान सील निधान । मावा संक चित्ति मत करो, होसी सही कुरा को बुरौ ।।३५८।। पण्यक पुत्र सह रख्या करं, बंधुदत्त नवि नख संचरं । भवसदत्त त्रिया क्षमा कराइ, तिम तिम प्रोहण चाल्या जाइ ॥३५।। मती कर मन माहै चित. मुझ बिजोग मरिसी सुत कंत । हौं पणि मरिस्पों तासु बिजोग, असो भयो कर्म संजोग ॥३६०।। भविष्यानुरुपा को स्पन रंणि समं सूती सत भाइ, सुपनो को देवता पाई। हे सुदरि तुम न करो चित, मास एक मिलिसी तुझ कत ॥३६१॥ सुपनो सुभ कामिणी देखियो, सुभ मन धीर पापणो कीयो । मिलिसी कंत मास जे माद, प्राण हमारा रहसी ठाइ ॥३६२॥ जहाज का समुद्र तट पर प्राममन चलत चलत केइ दिन गयो. प्रोहण सुमद तीर लागियो । बणिक उतर प्रोहण भार, बस्त किराणा चीर भंडार । ३६३॥ बालदि भरी बस्त बहु सार, बंधुदत्तस्यों वणिक कुमार । रसी रंग सब ही मनि भया, हथणापुरि तंगण पहचिया ॥३६४।। बन्धुवत्त एवं धनपति मेठ का मिलन पहृता ननि बधाई हार, बंधुदत्त आगम न्यौहार । सुणी बात धनपति सुख भयो, ले बाजा बहु सामहु गयो ॥३६५।। भेदि पुत्र बहु भयो उल्लाह, बाज्या बहु नीसाण धाव । वणिक पुत्र बहु भयो उछाह, पुत्र नन में ल्यायो साहु ।।३६६।।
SR No.090269
Book TitleMahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages359
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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