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________________ १८० महाकव ब्रह्म रायमल्ल मन्तिम पाठ मूलसंघ सारद सुभ गछि, छोडि पारि फषाइ निरभंछि । अनंतकीत्ति मुनि गुणह निधान, तास तणी सिषि कीयो बखाण ।।१५।। वरह्म राइमल थोडि बुधि, प्रखर पद को न लहै सुधि । जैसी मति दीनो अंकास, प्रत पंचमी को प्रगास ।।१६।। बत पंचमी जं को करै, केवल उसमतहि ने फुरै । जे याह कथा सुण दे कान, काल लहदि पावं निर्वाण ॥१७॥ सोलाहस तेसीसा सार, कातिग सूदि चौदसि सनिवार । स्वाति नक्षत्र सिद्धि सुभ जोग, पीडा दुख न व्याप रोग ॥१८॥ देस ढूढाइड सोभा घणी, पूर्ज तहां अली मन तणी । निर्मल तल नदी बहु फिरि, सुबस बस बहुत सांगानेरि ॥१॥ बहु दिसि भलो वयो बाजार, भरे पटोला मोती हार । भवण उत्तग जिणेसुर तणा. सौभ चंदवो तोरण घणा ॥२०॥ राजा राज कर भगवंतदास, राजकंबर सेवै बहु तास । परजा लोग सुखी सुख बास, दुखी दलिद्री पूरै पास ।।२।। श्रावक लोक बस धनवंत, पूजा करे जो अरहंत । उपरा उपरी बैर न कास, जिम इंद्र सुर्ग सुखवास ॥२२।। पाखर मात ज भूलो होइ, पंडित जन सह क्षभिज्यो मोहि । अति भयाण मति थोड़ी भई, कथा पंचमी व्रत की कही ।।२३ ।। बार बार नवि भणी पसार, जग में जीव दया ब्रत सार । जो नर जीव दया की पाल, रोग सोग नवि च्या काल ।।२४।। इति श्री भवसदंत चउपह. संपूर्ण । 1. क प्रति कथा ।
SR No.090269
Book TitleMahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages359
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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