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________________ १७२ महाकवि ब्रह्म रायमल्ल उद्दिम मगली बाला सार, उदिम थे पावं सिवद्वार । उद्दिम कर कर्म फल होइ, बावं जिसा तसु फल जोइ ।।२६।। उहिम करता हम न कोइ, उदिम करता सुगति होइ । उदिम करि जे चारित्र घर, तोडे कमें सिद्ध संचरं ।। २६३।। सगली बाता उहिम भलो, संपति लेइ जल तीरां चली । पंथी प्रोहण आवत जात, हथणापुर जाजे तहि साथि ।। २६४।। कामिनी सुणी कंत की बात, मान्यो बचन विकास्यों गात । चाली पंथ जहां सागर तीर, दास बेलि बन गहर गंभीर ।। २६५।। मंडए दाख सु महा उत्तंग, बंधी घुजा मुभ अधिक सुचंग । नग्र मध्य जे बस्त निधान, माग्यो सच मंडप के थान ।।२६६।। मोती माणिक बहुत कपर, चंदन बिस्नागर की जुर । जाति जाति का मेवा घणा, ढीगली आणि किया तहि तणा ।।२६७।। भवसदत्तरू उभौसाण, सुखस्यौं सं तिष्ठो' मंडप थान ।। मुज भोग सही मन सणा, मुग देव जिम देवांगना ॥२६८।। बन्धुदत्त के जहाज का प्रागमन रहिता तहां केइ दिन गया, बंधूदत्त प्रोहण पाइया । दमडी एक न पूजी रहयो, पाप जोग सगलौ खोइयो ।॥२६॥ फटा वस्त्र अति बुरा हाल, दुर्वल प्रस्ति उतरी खाल । बंधुदत्त दूरि थे जोइ. जलधि तीर धुजी लहकाइ ।।३००।। वाण्या वास्यों कर वखाण, देहायो जाइ कोण तहि थान । नाव वैसि वाण्या वालिया, भवसदत्त के धानकि गया ।।३०।। मन माहै पालो कोइ, ईह को देव देवांगना होइ । नम्या चरण धरती धरि सीस, गौवरि महेम विसवावीस ।।३०२।। १. क ग प्रति - निवस ।
SR No.090269
Book TitleMahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages359
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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