________________
भविष्यदत्त चौपई
१७१
सींचे माली तर बह भाइ, तिस का पाछै सो फलु खाई। बहु उपगार कीयो मुझ मात, सा' तिहि की विसरि गयो बात ।।२८१।।
बारह वर्ष भोग मैं गया, मात पिता सहु विसरि गया । धन संपति सोइ जगि सार, क्रीज सजन तात उपगार ||२२||
हौं पापी मति हीणौं भयो, मात पिता न वि सीधी कीयो । कोइ किसको सगो न हाइ, स्वारथ श्राप कर सहु कोइ ।।२८६ ।।
पाबं द्रव्य तही को सार, जो पर जोग्य करै उपगार । जिणवर यानि पतिष्टा करेइ, दान पारि तिहुं पात्रां देइ ।।२८४।।
उदिम करिबि ईहां थे पली, सम्पति ने माता में मिली। भवसदत्त मनि सोची बात, कामिणीस्यौं भास घिरतांत ।।२८५॥
भविष्यदत्त द्वारा अपना परिचय देना
सह सनबंध सुणों कामिणी, बिधिस्यों बात कही पापणी । भरथ क्षेत्र हयणापुर थान, धनपति सेठ द्रव्य को निधान ।।२८६।
कमलथी तिहि को कामिनी, भगति देव गुर सास्त्रोतणी। भवसदंत है ताहि को लाल, सुख मैं जात न जाणों काल ।।२८८।।
दूजी तीया सेठिक जाणि, रूपणि नाम रूप की खानि । बंधुदस सहि को जाईयो, रत्नद्वीप विणिज ही चालियो ।।२८८।।
हम पणि सासु साथि गम कीयो, मदन दीप साथि ही प्राइयो । बंधुदत्त करि कूछ कुभाष, छाड्यों भदन दीप वन ठाउ ॥२८६।।
पापी आपण गयो पसाहि, छांडि गयो मुझ वस बन माहि । कर्म जोगि जुर्गों पंथ लइयो, पुन्य उद तुम मेलो भयो ।।२०।।
इह धरतांत हमारी जाणि, कर्म जोगि प्रायो इहि थान । कानि हिम कीजे कोइ, जहि थे हथणापुरि गम होइ ॥२६॥
१. ख प्रति-छाडिउ हो जद बासना माहि ।