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बस्तुबन्ध
कमलश्री उरि उपरणौ, हस्तमागपुर जन्म पाइयो । माता वचन बीसfरियो, सत्रु साथि व्यापारियो ॥ मदन दीप मैं छाडियो, भाइ गयो पुलाइ ' । कामनि बहु संपति सही, साता उसे सुभाइ ॥२३३॥
महाकवि ब्रह्म रायमल्ल
कमश्री की दशा
चीपई - कमलश्री घरि बहु दुख करें, पुत्र वियोग वित्त मनि धरे । असुर पात श बिलराइ, घड़ी इक मन रहे मठाइ | २३४||
पुत्र दुख माता विन द रात दिवस राति सीभूत हो जात । सह समझा पुर का आइ, उपरा उपरी कहूँ सुभाइ ||२५||
नत्र कामिनी से ग्राह, उपरा उपरी कहूँ सुभाइ । माता पुत्र विछोहोकीयो, तहि को पांप उदै थाइयो ।।२३६||
एक कामिनी कहे हंसति, पूर्व न लाभ्यो जिण प्ररहंत । कमलश्री बहू पावं तुख, मीठा नहीं पुत्र का सुख ॥ २३७॥
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बोले एक गालि करि देई. बाद जिसा लिसा फल लेइ । मन बकाया दान न दीयो तहि यि पुत्र विछोरा भयो ।। २३५||
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कमलजी की बोली मात, हे पुत्री मेरी सुण बात 'चलोखो' श्रजिका के ठाम, घडि प्यारि लोथो विश्राम ।। २३९॥
कमली का अार्थिका के पास जानা
कमलश्री मन हरणी भइ मात सहित प्रजिका पै गइ । माव भगति बहु बंधा पाह. बैठी यजिका मार्ग मा ||२४०३
१. कगं प्रति पुल ।
१. चालिजो ।
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