SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 174
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भविष्यदत्त चौपई हो सन्यासी तस घर मित्त, सेव हमारी करी बहुत । गुण तुम तणा चिस मुझ रह्या, तुम वोठा हमि बहुत सुख सहा ।।२२३।। मन वछित वर मांगो धीर, ते सहु देस्यौ गहर गहोर 1 गोलो सुभट बहुत दे मान, ज्यों हमने दोन्ही वरदान ॥२२४।। कन्या रत्न देहु हम जोग, हम तुम मिल्सा कर्म संजोग । वितर भणे न करो विषाद, मौ तुमने फीनो परसाव ।।२२।। बन्धुदत्त और भविष्यानुरूपा का विवाह व्याहु तरणी सामगरी फर, नग्र तरणो बहु सोभा घरे । करीवि कुर्वण ब्रह विसधार, चौरी मंब्य रच्या सोभार ॥२२६।। गावै अपघरा करि बहु कोड, वर कन्या के बांध्यो मौड । साक्ष विप्र वैसांदर भयो, भवसबंत तीया कर यहियो १२२७।। चौथौ फेरो करायौ कुमार, हाथ छुड़ाकरण को प्राचार । वितरि भारी पाणी लीयो, भवसवंत के करि मेल्हीयो ॥२२॥ कन्या नग्र दीयो सह साज, दोनो मदन दीप को राज । बस्त पदारथ भरित भंडार, मोती माणिक सोनी सार ।।२२६॥ बिनो भगीन गुण भारुया घणा, भबसवंत सेवा तुम सणा | नमसकार करि दोनों मान, वितर गयो प्रापण याम ॥२३०॥ भवसर्वत्त सुख सेवो घणी, पूर्व पून्य संच्यौ प्रापणों । सोया सहित बन क्रीडा करे, देव सासत्र गुरु निश्च धरै ।।२।। इन्द्रपुरी जिम भुजे भोग, पीड़ा सुन्न न पाणै रोग । भक्सक्स इहि विधि सुकमाल, सुख मैं मात न जाणे काल ॥२३२॥ १. कब की । १. स्व पति सास्त्र ।
SR No.090269
Book TitleMahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages359
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy