________________
भविष्यदत्त चौप
असनवेग एक ' बितर सुट दया रहित प्रति महा निकष्ट । मन लोग सागर में दीघो, पापी तौ न कसक्यो होय || २०४ ।।
चारा पुन्य सण परभात, हाँ राखी बितर करि भाउ । सह सनबध पाछिल जाणि व्यंतर सहित रहाँ इहि धान ||२०||
स्वामी मस्यौ करो यखाग, कोंण देस पट्टण तुम धान । का नाम तुम पित्ता रु माय, कहो बास हम से बाइ ||२०६ ॥
भविष्यदस का परिचय
भवसवंत बोल्यो सुनि नारि, कहाँ बात सहु मनि अवधारि । भरय खेत्र कुरजंगल देस. हथरणापुर भूपाल नरेस ॥२०७॥
धनपति सेठ वसंतहि ठाम, तासु हीया कमलश्री नाम | भवसवंत हाँ तहि को बाल, सुख में जात न जाणे काल ॥ २०८ ॥
दूजं मात सरूपण पुत्त, पंडित नाम दियो बंधुत्त । प्रहण पूरि बीप चल्यो हो पण साथि वासु के मिल्यो । २०६ ॥
सो पापी मति हीणो भयो, मदन दीप मुझे छोटि गयो । कर्म जोगि पट्टण पाबियो इहि विधि तुम यानकि ग्राइयो ।।२१०॥
सुंदरि सुगी फजर की बात हरियो चित्त बिगायौगात । आयो सबैनां व्यौहार, दोउ बरावर कुल प्राचार ।।२११।।
भविष्यान रूपा का प्रस्ताव
बोली कामिणी सुणी कुमार, करहु हमारे श्रगीकार | भोग बिना नेइ दिन जाइ ते दिन ब न लेखे लाइ ।।२१२ ।।
मनुक्ष जन्म फल को सार बोसे सह संसार प्रसार । भोगि वन जाणे कोइ तेनर पसू बराबर होइ ।।२१३.१
१. क प्रति इव ।
१६३