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________________ महाकवि ब्रह्म रायमल्ल सुरहि नित महा' निरदोष, जिमत होइ बहत संतोष । सिखरणि बही घोल बन्छु खीर, भषसवंत जिमी बरवीर ।।१९६।। पीयो भाचमन बीडा पान, चोया चंदन वास निधान । सौडि पालिको थानक सार, समाधान करि वीयो प्रहार ।।१६७।। पाचे प्रापण भोजन कीयो, उत्तिम नीर प्राचमम लीयो । फोफल पान सुगंध चढाइ, भवप्लवंत नखि बैठी बाई' ।।१९।। वस्तुबन्ध तिलक पटण देखि सुविसाल, चंद्रप्रभ जिन पूजा कीन्ही ।' पूर्व मित्रेसुर प्रायो, लिखो लेख सुभ सीख दीन्ही ।।" सुभ साता प्राइ उदै, कन्या मिली भुजारिंग । निश गुण पोज दि , नाहरको नि १६६॥ चौपई - कबर भणे तुम सुदरि सुरणी , भासो मुझ संसो मन तणी ।। उजड बसे नन कोण संजोग, बस्त बहुप्त नवि दरसे लोग ॥२०॥ भविष्यानुरूपा का परिचय बोल सुंदर सुणो कुमार, कहाँ पाछिलो सह व्यौहार ।। मदन दीप जाणे सहु कोइ, बहु तिलकपुर परण होइ ।।२०१॥ राउ जसोन नगरी को नाथ, दुर्जन नर को कर निपात । बणिवर अस नाम भगदत, निधर्म दिश राखे चित्त ।।२०२॥ ताफै नागसेरणा कामणी, भगति देव गुरू भायक तणी । हौं तस पुत्री महा सरूप, नाम वियो भौसाणह' रूप ॥२०३।। १. क प्रति सोहा । २. ज प्रति कोनी। ३. ग प्रति कोनो । ४. क एवं ग प्रति भानौ । ५. ख प्रति भौसानसरूप ।
SR No.090269
Book TitleMahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages359
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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