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भविष्यदत्त चौपाई
देखित मासी प्राघो खडिउ, चंद्रप्रभु मंदिर दिठि पडिउ । महा सिखर बहुरत्न जडिड. जाणि विधाता श्रापण घडिउ || १४२ || चौरी मंडप वण्या सुचंग, चंदवा तोरण निर्मल रंग । सोधन थंभ सभा का यान, सोभा जैसी सुर्ग बीमान ।। १४३५ देखो बावडी उत्तम नीर, हाथ पाइ मुख धोये नीर । पंथ सोधमा करें कुमार, पंथ हुती मध्य उघाड्यो द्वार ।। १४४ ।।
जिन स्तवन एवं पूजा
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जय जयकार कीयो जगनाथ नभ्या चरण धरि मस्तकि हाथ । दीन्ही तीन जु परदक्षणा, गुण ग्राम भास्था जिनतणा ।। १४५।।
जे जे स्वामी जग आधार भष संसार उतारं पार 1 सुम हो सरणाइ साधार मुझ संसार उतारो पार ।। १४६ ।।
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मूल्या पंथ दिखावण हार, तुम छो मूकति तथा दातार ।
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चरण जिणेसुर पुजा करें सुग्र अछरा निह वरं । बिनती सुणे हमारी नाथ, कुमती कुलात्र निरोधो साथ || १४८ ॥
की वंदना सरसी गयो, धोत्रति चमत्र समपन कोयो । धागे द्रव्य एकअ कोया, चंद्रप्रभ पूजा चालिया ॥१४६॥
बंधा जाई जिणेस्वर देव सनपने चरण पधारया एव । पाछे पुजा रचि विस्तार सोवन भारी नीर सुचार || १५० |
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महागंन जल माझि कपूर सर्व ऊपध मिले दूरि फामुनिल महा सुबारि जिनपद श्रागं दीन्ही धार
॥। १५१ ।।
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कुकम चंदन घसि बांवनी मझि कपूर मिलाये घणौ । बास सुगंधक चोली भरो जिनवर चरण चरचा करी
।।१५२।।
गरडोराइ भोग सुबास, सो दुतिया चंद्र उजास । अखिल वास भमर से गुंज, जिणपद आगे कीयो पुज ।। १५३ ।।
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