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________________ १५६ महाकवि ब्रह्म रायमल्ल चौप:- गई रनि दिनिता ऊगियो, में कार जमीन कीयो । हाथ पाइ मुख प्रखालियो, नाम पंच परमेष्टी लीयो ।।१३।। ऊदिम करि चालियो कुमार, पंथ पुराणो दीठो सार । मन माई सो चिता कर, गगनदेव विद्याधर फिर ॥१३२॥ व्यापार जे पावं लोग, ते चढि जाइ पोत संजोग । भवसदत्त कीयो दृढ चित्त, चाल्यो बेगि पुराणी पंथ ।।१३३ मदन द्वीप का धर्णन भाग पर्वत देखि उतंग, उपरि सोभा कोटि सुनंग । आगे गुप्ता देखि इक भलो, तिहि मै बाट मनोहर चली ।।१३४॥ चालत चालत प्राघो गयो, प्रागै उतिम वन देखियो । कुवा बावडी पुहे करताल, एक क्षेत्र देखि सुकमा । १३५।। फुलत फसत देखि बनराइ, भयो हरिष प्रति अंगि न माइ । छात्री मंडप देखी चौबगान, वैसक महा मनोहर थान ॥१३६।। गढ प्रागै देख्यो निर्वास, खाइ कोट खण्या पहुंपासि । खोलि कपाट भीतर गयो, मानिख नग्र सुनो देखियो ।।१३७।। देख्या मंदिर पौलि पगार, धन कण भरि तहाँ हाट बाजार । बस्न पदारथ बहुली जोई, सूनी मनिक्ष' न दोसै कोइ ।।१३८।। फिरत फिरत सो प्राघो गयो, राजा के मंदिर देखियो । महा सिंघासण सोना तो, छत्र चमर देख्या प्रति घणी ॥१३॥ द्रव्य तणी दीठा भंडार, बस्तकपुर प्राभरण पार । सध्या थान मनोहर सुघ, चोवा चंदन छास सुगंध ॥१४॥ जिन मन्दिर सोयन कलस सिन्नर सोभंति, उपरि महाधुजा हलमंत । दोटा बहुत अंन का गरा, हस्ती वाजि पाइगा खरा ।।१४१॥ १. मनुष्य ।
SR No.090269
Book TitleMahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages359
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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