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________________ १४० महाकवि ब्रह्म रायमल्ल नमो विमल जिन त्रिभुवन देव । जस पसाई विमल मति एव । प्रणमौ जिरण चीदह घर्मत | काटि कसे पात्यो सिव पंथ ||१०| वंदो विधियों धर्म जिदि । करह से मर व फुरिंगद सांति नमो जिण मग वच काय । नाम लेत सह पातिग जाई || ११ ॥ कुंथनाथ जे बंद कोइ । तिहि के दुख दलित न होइ । अरहनाथ बंदु सुध भाइ । मेन बक पूजि र सिन पर साह ||१२|| महिल नमो ते तहि तप कीयो । कवरि कालि तहि संजम लोयो । मुनिसुव्रत बंदी घरि धीर सोमा सांवल वर्ग सरीर || १३ ॥ कुसमी मंदी नमिनाय । मुक्ति एमणिस्यों कीन्हो साथ । नेमिनाथ व गिरिनारि । तजि काया पती सिवहार || १४ || पारसनाथ करो चंदना | सह्या परिसा वीरनाथ जंबो जगिसार । राख्यो धम्मं तणं सप्पा || फमठ व्यौहार ।। १५ ।। जिर चौबीस कह्या जिरादेव । हुवा व छं होइसी एव ॥ तिसह नमः वचन मन काय नाम लेल सहु पालिंग बाइ ॥ १४ ॥ बिरह्माण तिथंकर बीस । मन बच काया नम जे सौस हुवा जेता मूढ केवली । ते सहु प्रणमौ मानंद रली ॥१५॥ बहु विधि प्रणमौ सारद माय । भूलो पाखर आणं ठाई । करौ इ प्रसाब वृधि जे लहो । भवसवंत को न कहो ॥ १६॥ मन बच काय नमौ गणवीर । चौदह से त्रेपन प्रतिधीर ॥ दीप ढाई चारित घरे ते सहु नमो विधि विस्तरं ॥ १७॥ देव सास्त्र गुरु बंबो भाइ । बुधि हरेन्द्र तम्ह तर्ण पसाह । ही मूरिख नवि जाणौ मेद लहो न घथं होइ बहु वेद ||१८|| देव सास्त्र गुरु को दे मान देव सास्त्र गुरु कुंड सहौ । तिहि नै उपने वृधि निधान ।। व्रत पंचमि को फल कहो ॥१६॥
SR No.090269
Book TitleMahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages359
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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