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महाकवि ब्रह्म रायमल्ल
नमो विमल जिन त्रिभुवन देव । जस पसाई विमल मति एव । प्रणमौ जिरण चीदह घर्मत | काटि कसे पात्यो सिव पंथ ||१०|
वंदो विधियों धर्म जिदि । करह से मर व फुरिंगद सांति नमो जिण मग वच काय । नाम लेत सह पातिग जाई || ११ ॥
कुंथनाथ जे बंद कोइ । तिहि के दुख दलित न होइ । अरहनाथ बंदु सुध भाइ । मेन बक पूजि र सिन पर साह ||१२||
महिल नमो ते तहि तप कीयो । कवरि कालि तहि संजम लोयो । मुनिसुव्रत बंदी घरि धीर सोमा सांवल वर्ग सरीर || १३ ॥
कुसमी मंदी नमिनाय । मुक्ति एमणिस्यों कीन्हो साथ । नेमिनाथ व गिरिनारि । तजि काया पती सिवहार || १४ || पारसनाथ करो चंदना | सह्या परिसा वीरनाथ जंबो जगिसार । राख्यो धम्मं तणं
सप्पा ||
फमठ व्यौहार ।। १५ ।।
जिर चौबीस कह्या जिरादेव । हुवा व छं होइसी एव ॥ तिसह नमः वचन मन काय नाम लेल सहु पालिंग बाइ ॥ १४ ॥
बिरह्माण तिथंकर बीस । मन बच काया नम जे सौस हुवा जेता मूढ केवली । ते सहु प्रणमौ मानंद रली ॥१५॥
बहु विधि प्रणमौ सारद माय । भूलो पाखर आणं ठाई । करौ इ प्रसाब वृधि जे लहो । भवसवंत को न कहो ॥ १६॥ मन बच काय नमौ गणवीर । चौदह से त्रेपन प्रतिधीर ॥ दीप ढाई चारित घरे ते सहु नमो विधि विस्तरं ॥ १७॥
देव सास्त्र गुरु बंबो भाइ । बुधि हरेन्द्र तम्ह तर्ण पसाह । ही मूरिख नवि जाणौ मेद लहो न घथं होइ बहु वेद ||१८||
देव सास्त्र गुरु को दे मान देव सास्त्र गुरु कुंड सहौ ।
तिहि नै उपने वृधि निधान ।। व्रत पंचमि को फल कहो ॥१६॥