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अथ भविष्यदत्त चौपई लिख्यते ॥
मंगलाचरण
|| श्री वीतरागाय नमः ॥
स्वामी चंद्रप्रभ जिणनाथ । नि षण्यौ चंद्रमा तासु
।
चौबीस तीर्थङ्कर स्तवन
नम चरण धरि मस्तकि हाथ ॥
काया उज्जल अधिक उजासु ॥ १॥
प्रादिनाथ बंदौ जिणदेव । सुर नर फण मिलि पाए सेब अजितनाथ जे बंदौ भाद्र । दुःख वालि रोग सहज
|| २ ||
संभवनाथ नम गुणवंत भए सिद्ध सुख है भनंत । प्रभिनन्त्रण प्रणम बहु भाइ । रक्षा करो जीव छह काय ॥३॥
प्रणमु सुमति सुमति दातार । भवियरण भव उतारण पार । मंदौ प्रसप्रभु जिणराइ | बंदत असुभ कर्म छ जाई || ४ ||
हरितवर्ण जिरणचैव सुपास | बंदत पुरवं भवियम प्रास । चंद्रप्रभ का प्रणमी पाह कमल वर्ण सनिम्मेल काय ॥५॥
प्रणम पहुपदंत जिननाथ । मुक्ति रमणिस्यों कोन्हौ साथ । नम देव सीतल धरि ध्याम | मैणराई को मोडिजमान || ६ ||
जिस श्रेयांस व विभात । स्वामो करों करम को घास | बासपुजि बंदौ जगिसार । उप बुद्धि होइ बिसतार ||