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महाकवि ब्रह्म रायमल्ल प्रतिमा है । यहाँ पाश्र्वनाथ की दो पांच फीट ऊंची प्रतिमाएँ हैं जो अत्यधिक मनोश हैं । इनमें से एक मति मन्दिर की मरम्मत करते समय प्राप्त हुई थी।
आदिनाय के समान ही नेमिनाथ का मन्दिर भी विशाल एवं प्राचीन है। इसमें नेमिनाथ स्वामी की मूलनायक प्रतिमा है जो प्रत्याधिक मनोहर एवं मनोज है। ग्राम में उत्तर-पश्चिम की ओर छतरियां हैं वहाँ भट्टारकों की निषेधिकाएं हैं। भट्टारक प्रभाचन्द्र की निषेधिका संवत् १५-६ में स्थापित की गगी थी। दूसरी निषेधिका संवत् १६४४ में स्थापित की गयी थी। इन निषधिकायों से ज्ञात होता है कि टोडारायसिंह कभी भट्टारकों की गतिविधियों का प्रमुख केन्द्र रहा था ।
यहीं पहाड़ पर एक नशिया है वो कभी जन मन्दिर था तथा प्राजकल सार्वजनिक स्थान बना हुआ है । मन्दिर के द्वार पर संवत् १८५७ का एक लेख प्राज भी उपलब्ध है।
सवाई माधोपुर रणथम्भौर दुर्ग की छत्रछाया में बसा हुमा सवाई माधोपुर महाराजा सवाई माधोसिंह (१७००-६७) द्वारा संवत् १८१६ (१७६२) में बसाया हुआ प्राचीन नगर है । बाजकरन यह नगर जिला मुख्यालय है। चारों और घने जंगल एवं पर्वतमालामों से घिरा हुमा सवाई माधोपुर की प्राकृतिक छटा देखत ही बनती है। नगर के पास ही घने जंगल में शेरगढ़ है जो पहले अच्छी वस्ती थी। वह का जैन मन्दिर अपने प्राचीन वैभव की याद दिला रहे हैं।
सवाई माधोपुर जैन मन्दिरों एवं शास्त्र भण्डारों की दृष्टि से कभी समृद्ध नगर रहा था । यहाँ के मन्दिरों में प्राचीन मूतियां प्रतिष्ठापित हैं मुर्तियाँ भी विशाल एवं कलापूर्ण हैं घिससे पता चलता है कि कभी यह नगर जैन धर्म एवं सस्कृति का बड़ा केन्द्र या। संवद १८२६ में सम्पन्न पंचकल्याणक प्रतिष्ठा अपने ढंग की महत्त्वपूर्ण प्रतिष्ठा थी तथा जिसमें हजारों की संख्या में जैन प्रतिमायें सुदूर प्रान्तों से सायी जाकर प्रतिष्ठापित की गयी थी। इसके प्रतिष्ठापक घे दीथान संधी नन्दलाल प्रतिष्ठाकारक भष्ट्रारक सुरेन्द्र कौति थे । उस समय यहाँ पर जयपुर के महाराजा सवाई पृथ्वीसिह जी का पासन था ।
बर्तमान में यहाँ रणथम्भौर, शेरगढ़ तथा चमात्कार श्री के मन्दिर के अतिरिक्त ६ मन्दिर एवं चैत्यालय है ।