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महाकवि ब्रह्म रायमल्ल
ने कराया । एक जनश्रुति के अनुसार राजा मानसिंह की कहानी जुड़ी हुई है तभी से " सांगानेर का सांगा बाबा लाये राजा मान" के नाम से दोहा भी लोकप्रिय बन
गया।
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सांगानेर आज भी हाथ से बने कागज एवं विशिष्ट कपड़े की छपाई के लिये प्रसिद्ध है। नगर का तेजी से विकास हो रहा है और इसकी आज जनसंख्या १६००० तक पहुँच गयीं है ।
तक्षकगढ़ (टोडारायसिंह )
टोडारायसिंह 'डाड प्रदेश के प्राचीन नगरों में गिना जाता है। शिलालेखों, ग्रन्थ प्रशस्तियों एवं मूर्तिलेखों में इस नगर के टोडारायत्तन, तोडागढ़, तक्षकगढ़, तक्षक दुर्ग आदि नाम मिलते हैं। वर्तमान में यह टोंक जिले में अवस्थित है तथा जयपुर से दक्षिण की भोर ६० मील है। नगर के चारों ओर परकोटा है तथा परकोटे में कितने ही खण्डहर भवन हैं जिनसे पता चलता है कि कभी यह नगर समृद्धशाली एवं राज्य की राजधानी रहा था। स्वयं तक्षकगढ़ नाम ही इस बात का द्योतक है कि यह नगर नाग जाति के शासकों का नगर था। मथुरा एवं पद्मावती में नाग जाति का भी उसी समय बसाया गया होगा । ७वीं शताब्दी में टोडारायसिंह चाटसू के गुहिल वंशीय शासकों द्वारा शासित था । १२ वीं शताब्दी में यह नगर अजमेर के चौहानों के अधीन आ गया। इसके पश्चात् टोडारायसिंह विभिन्न शासकों के प्रधीन चलता रहा इसमें देहली, आगरा एवं जयपुर के नाम उल्लेखनीय हैं। सोलंकियों के शासन में यह नगर विकास की ओर बढ़ने लगा |
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अकबर ने सोलंकियों से टोडारायसिंह को जीत लिया और आमेर के राजा भारमल के छोटे भाई जगन्नाथ को यहाँ का शासन भार सम्हला दिया। जगन्नाथ राम के शासनकाल में यहां बावडियों का निर्माण हुआ। स्वयं महाराजा ने भा अपने नाम की बावडी बनवायी। इसलिये टोडारायसिंह बावडी, दावडी, गट्टी और पट्टी के लिये प्रदेश भर प्रसिद्ध हो गया ।
टोडारायसिंह जैन साहित्य एवं संस्कृति की दृष्टि से प्रत्यधिक महत्त्वपूर्ण नगर माना जाता रहा। राजस्थान के जैन ग्रन्थ भण्डारों में सैंकडों ऐसी पाण्डुलिपियाँ
प्रजाति संग्रह- - डा० कासलीवाल - पृष्ठ संख्या ११३ ।
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