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महाकवि की काव्य रचना के प्रमुख नगर
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धर्मं परीक्षा की प्रति करवा कर मन्दिर में विराजमान की १८ वीं एवं १९ वीं शताब्दी में यहाँ ग्रन्थों को प्रतिलिपि करने का कार्य दरावर चलता रहा। जयपुर के ग्रन्थ भण्डारों से पचास से भी अधिक ऐसी पाण्डुलिपियाँ होगी जिनका लेखन कार्य इसी नगर में हुआ था। प्रतिलिपि करने वाले पण्डितों में पं० चोखनन्द, पं० रादाईराम गोधा एवं उनके शिष्य नानगराम का नाम उल्लेखनीय है ।
सांगानेर जैन एवं वैष्णव मन्दिरों की दृष्टि से भी उल्लेखनीय नगर है ।
पूर्व
में से
यहाँ का संत्री जी का जैन मन्दिर राजा के प्राचीन एक मन्दिर है। इस मन्दिर का निर्माण १० वीं शताब्दि में हुआ था। मन्दिर के संवत् १००१ का एक लेख अंकित है । ४ १००१ के पूर्व ही होना चाहिये ।
चौक में जो देदी है उसकी बांदरवाल में जिसके अनुसार मन्दिर का निर्माण सबत्
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मन्दिर का द्वार अत्यधिक किन्नर - किशरिया विविध
उनके हाथ में फूलों की
इस मन्दिर की कला की तुलना मात्र के दिलवाडा के जैन मन्दिर से को जा सकती है । जिसका निर्माण इसके बाद में हुआ था। कला-पूर्ण हैं और चौक में दोनों ओर स्तम्भों पर वाध्य यन्त्रों के साथ नृत्य करती हुईं प्रदर्शित की गयी है। माला है तथा वे चंवर करते हुए दिखलाये गये है। दूसरे चौक में जो वेदी है उसके तोरणद्वार एवं बाँदरवाल अत्यधिक कला पूर्ण है और ऐसा लगता है जैसे कलाकार ने अपनी सम्पूर्ण कला उन्हीं में उडेल दी है । कलाकार के भाव एकदम स्पष्ट है और जिन्हें देखते ही दर्शक भाव विभोर हो जाता है। इसी चौक के दक्षिण की ओर गर्भगृह मे संवत् १९८६ की श्वेत पाषाण को भगवान पार्श्वनाथ की बहुत ही मनोज्ञ प्रतिमा है जिसके दर्शन मात्र से ही दर्शक के हृदय में अपूर्ण श्रद्धा उत्पन्न होती है । मन्दिर के द्वितीय चौक के द्वार के उत्तर की प्रोर 'ढोलामारू' का चित्र अंकित है । जिससे पता चलता है कि ११ वीं शताब्दि में भी ढोला मारु प्रत्यधिक लोकप्रिय था। मन्दिर के तीन शिखर सम्यक् श्रद्धा, ज्ञान और चारित्र के प्रतीक है ।
जैन मन्दिर के प्रतिरिक्त यहाँ वा सांगा बाबा का मन्दिर भी अत्यधिक लोकप्रिय एवं इतिहास प्रसिद्ध मन्दिर है। जहाँ सांगा बाबा के चित्र को पूजा की जाती है । यहाँ एक सोगेश्वर महादेव का मन्दिर है जिसका निर्माण राजकुमार सांगा
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ग्रन्थ सूची पंचम भाग - पृष्ठ संख्या ११६.
संवत् १००१ लिखित पण्डित तेजा शिष्य याचायं पूर्णचन्द्र ।