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काव्यों के प्रमुख पात्र
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कायों के प्रमुख पाय
जैन काव्यों के प्रमुख पात्रों में ६३ मलाका महापुरुषों के अतिरिक्त पुण्य पुरुषों एवं सामान्य पुरुष एवं स्त्री भी प्रमुख पात्र के रूप में प्रस्तुत होते हैं। नायक एवं नायिकानों के साथ ही जो दूसरे पात्र पाते हैं वे भी राजा महाराजा, विद्याधर एवं परिवार के दूसरे सदस्य भी बारी-बारी से ग्राकर काव्य को आकर्षक बनाने में सहयोगी बनते हैं । ब्रह्म रायमल्ल ने अपनी कृतियों में पात्रों की संख्या में नं नो वृद्धि की है और न जिना पात्रों के कथानक को लम्बा करने का प्रयास किया गया । इन सभी पात्रों का परिचय प्रत्यन्त आवश्यक है जिससे उनके व्यक्तित्व की महानता को भी पाठक समझ सकें और व्यर्थ की ऊहापोह से बच सकें । अव यहाँ कुछ प्रमुख पात्रों का परिचय दिया जा रहा है
श्रीपाल रस १. श्रीपाल-श्रीपाल चम्पापुर के राजा अरिदमन के पुत्र थे। ये कोटिभट कहलाते थे । कुष्ठ रोग होने पर इन्होंने अपना राज्य अपने चाचा को सौंप कर
सं. अन्य कुटपियों ने सा५ चाना पड़ा। र अवस्था में ही इनका मैना सुन्दरी से विवाह होने पर सिद्ध चक्र विधान के गन्धोदक से इन्हें कुष्ठ रोग से मुक्ति मिली। विदेश में एक विद्याधर से जल तरंगिनी एवं शत्रु निवारिणी विधा प्राप्त की । अदल सेठ के रुके हुये जहाजों को चलाया एवं उन्हें चोरों से छुड़ाया । रेण मंजूषा नामक राज्य कन्या से विवाह होने पर इन्हें धोखे से ममुद्र में गिरा दिया गया लेकिन लकड़ी के सहारे तरते हुए एक द्वीप में जा पहुंचे। वहां उसने गुणमाला कन्या से विवाह किया । धवल सेठ के भाटों द्वारा इनकी जाति भाषा बताने पर इन्हें सूली की सजा दी गयी लेकिन रण मंजूषा ने इनको छुड़वाया । बारह वर्ष विदेश में घूमने के पश्चात् मैना सुन्दरी सहित अनेक वर्षों तक राज्य सुख प्राप्त किया तथा अन्त में दीक्षा प्राप्त कर निर्वाण प्राप्त किया ।
२. मैना सुन्दरी - मगध देश में उज्जनी के राजा की राजकुमारी थी। पिता ने वर्म की बलवत्ता का बखान करने पर क्रोधित होकर कुष्ठी श्रीपाल से विवाह कर दिया। लेकिन सिद्धचक्र विधान करके उसके गन्धोदक द्वारा पति का कुष्ठ रोग दूर करने में सफलता प्राप्त की । कितने ही वर्षों तक राज्य सुख भोगने के पश्चात् संसार से विरक्त होकर दीक्षा धारण कर सोलहवें स्वर्ग में देव हो गयी।