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________________ १०६ महाकवि ब्रह्म रायमल्ल हो नारद जी सुनहु कुमारो, हो उपजे विणास इति संसारी । दुखि सुखि जीव सदा रहे जो, हो पाप पुण्य द्वे गैल न छाडे । सह परिसह तप करें जो हो पहू चे मुकति कर्म सहु तोड़े ||८०|| सम्यकत्व की महिमा सर्वोत्तम है। उसी के सहारे देव एवं इन्द्र के पद को प्राप्त किया जा सकता है । अनेक ऋद्धियाँ प्राप्त की जा सकती है तथा सर्वार्थसिद्धि एवं निर्वाण भी प्राप्त किया जा सकता है इसलिये मानव के सम्यग्दर्शन होना महान् पुण्य का सूचक है | हो समकित केबल सुर धरणंद, समकित केवल उपर्ज इन्द्र area बल भौगर्व हो, समकित के अस उपजं रिधि । जीव सदा सुख भोगवे हो. समकित बल स श ॥११४॥ - श्रीपाल रास अलौकिक शक्ति वर्णन ब्रह्म रायमल्ल ने अपने प्रायः सभी प्रमुख काव्यों में अलौकिक शक्तियों का वर्णन किया है । इन शक्तियों को नायक स्वयं अपने पुण्य से उपार्जित करता है । अथवा उसे पुण्यात्मा होने की वजह से 'दूसरों के द्वारा दे दी जाती है। क्या प्रद्युम्न और क्या भविष्यदत्त एवं श्रीपाल अथवा हनुमान सभी को अनेक ऋद्धि प्राप्त हैं और के इन्हीं के सहारे अनेक विपत्तियों पर विजय प्राप्त करते हैं। श्रीपाल राम में भ्रष्टान्हिका व्रताचरण से कुष्ठ रोग दूर होना, समुद्र को लांघ जाना, रंण मंजूषा की देवियों द्वारा सतीत्व की रक्षा करना श्रादि सभी में अलौकिकता का आभास मिलता है । प्रद्युम्न को तो सोलह गुफाओं में जाने पर अनेक ऋद्धियाँ प्राप्त हो जाती है तथा कंबनमाला से तीन विद्याएं प्राप्त होती है और वह इन्हीं विद्याओं के बलबूते पर कालसंवर, सत्य मामा एवं स्वयं अपने पिता श्रीकृष्ण जी को अपना पौरुष दिखलाने में सफल होता है । युद्ध में विद्या बल से शत्रुसेना को मृत्यु की नींद में सुला देना तथा यापस में मित्रता होने पर उसे पुनः जीवित कर देना एक साधारण सी बात है । इसी प्रकार भविष्यदत्त को भी ऋद्धियाँ प्राप्त हो जाती है और इन्हीं के सहारे विमान का निर्माण करके नन्दीश्वर द्वीप की अपनी पत्नी के साथ बन्दना करने जाता है। सेठ सुदर्शन का सूली से बच जाता एवं सूनी का सिंहासन बन जाना चमत्कारिक घटनाएँ है जिन्हें पढ़कर पाठक आश्चर्य में भर जाता है और स्वयं भी ऐसी अलोकिक शक्ति प्राप्त करने का प्रयास करने लगता है ।
SR No.090269
Book TitleMahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages359
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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