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महाकवि ब्रह्म रायमल्ल
श्रीगाल भी जब रणमंजूका विवाह करके अपने जहाज पर पाया था तो उसने भी सभी को जिमाया था
हे बिउहर मष्टय भयो जैकार, सिरोपाल वोमी ज्योणार ॥११३।१७।।
उस समय भी बरातें सज-धज के साथ चढ़ती थी। बरात: लोग प्रासों में कज्जल मुख में पान, केशर चंदन एवं कुकम के तिलक लगाकर निकलते थे। बरात कभी-कभी एक-एक महिने तक रूकती थी।' खुल्हा सेहरा लगाते, गले में मोतियों की माला पहिनते । कानों और हाथों में कुण्डल पहिनते । महाकवि ब्रह्म रायमल्ल ने श्रीपाल रास, प्रद्युम्नरास, हनुमन्त कथा, भविष्यदत्त चौपई एवं नेमीश्वररास मभी काध्यों में एक से अधिक बार विवाह विधि का वर्णन किया है । सभी में प्रायः एक मा वर्णन छुपा है। उसके अनुसार ब्राह्मण फेरे कराया करते थे। भग्नि, ब्राह्मण एवं समाज को साक्षी में विवाह लग्न सम्पन्न होता था। श्रीपालरास में इसी तरह का वर्णन निम्न प्रकार है
हो लीयो राइ जीतिगी खुप्ताह, कन्या केरो लगन लिखाइ । मण्डप बेदी सुभ रची, हो अंव पत्र को बंधी माला कनक कलस बहु विसी षण्पा, हो छाए निर्मम वस्त्र विसास ॥१६४॥ हो गावे गीत तिया करि कोड, बस्त्र पठंबर बंधे मोड। फूलमल सोभा घणी हो, चोया चंदन वास महोडि ॥ वेदो विप्र हुलाइयो हो. जर कन्या बैठा करि जोरि ॥१६॥ हो भावरि सात फिरिस भई बाषि, भयो विवाह अग्नि दे साखि। राजा बीनों बाइजो हो कन्या हस्ति कनक के काग । वेस ग्राम बीमा घणा हो, विनती करि दोनो बहमान ॥१६६॥
--श्रीपाल रास राजघराने के विवाह के अतिरिक्त सामान्य नागरिकों के यहाँ भी विवाह उसी तरह धूमधाम से सम्पन्न होते थे । दहेज देने की प्रथा उस समय भी खूब प्रचलित
१. हो मास एक तहा रही बरातो, भोजन भगति करी घणा जी ॥३|| २. अहो घढियौ जी व्याण सिव देवि हो बाल, सोभा जी सेहुगे मोत्यां जी
माल। काना मी कुडल जगमग, अहो मुकट बग्यो होरा जी लाल मीश्वररास।।