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सामाजिक स्थिति
राजा जगन्नाथ के नाम का उल्लेख करने वाली राजस्थान के जैन ग्रन्थागारों में प्राज भी पचासों ग्रन्थ सुरक्षित रखे हुये हैं।
सामाजिक स्थिति सामाजिक दृष्टि से ब्रह्म रायमल्ल का समय प्रत्यधिक अस्थिर था देश में मुस्लिम शासन होने तथा धार्मिक बिद्वेषता को लिये हुये होने के कारण सामाज की स्थिति भी सामान्य नहीं थी | समाज पर भट्टारकों का प्रभाव व्याप्त था और धार्मिक एवं साहित्यिक क्षेत्र में उन्हीं का निर्देश चलता था। देहली के भट्टारक पट्ट पर भट्टारक धर्मचन्द्र (१५८१-१६०३) भट्टारक ललित कीति एवं भट्टारक चन्द्रकीति विराजमान थे | महाकवि का सम्बन्ध यद्यपि भट्टारकों से अधिक रहा होगा लेकिन उन्होंने अपना स्वतन्त्र व्यक्तित्त्व ही बनामे रखा ।
ब्रह्म रायमल्ल के समय में विवाह आदि अवसरों पर बड़ी-बड़ी जीमनबार होती थी 1 कवि ने ऐमी ही जीमनवारी का मधुम्न रास, भविष्यदत्त चौपई एवं श्रीपाल रास में वर्णन किया है । जब प्रद्युम्न सत्यभामा के घर गया तो वहाँ भानु कुमार के विवाह का जीमन हो रहा था। । हो सति भामा घरि गयो कुमारी, भानु कुमार ज्या ज्योणारी ॥ ४४ । ६३ ।
भविष्यदत्त जब बन्धुदत्त से वापिस पाकर मिला तब भी मिलन की खुशी में भविष्यदत्त ने जहाज के सभी वणिक पुत्रों को सामूहिक भोजन दिया था।
बाण्या सहित करी ज्यौरणार, पाम सुपारी वस्त्र प्रपार ।। ४४ । २६ ।
कवि ने उस समय के कुछ स्वादिष्ट व्यंजनों के नाम भी गिनाये हैं। ये सभी स्वादिष्ट भोजन कहलाते थे और उसके खाने के पश्चात् तृप्ति हो जाती थी।
घेवर पचधारी लापसी. नहि न जीमत प्रति मन खुसी। उजल बहुत मिठाई भली. जहि ने जीमन प्रति निरमली ॥६॥ खाय तोरइ विजन भांति, मेल्या बहुत राहता जाति । मंग मंगोरा खानि वालि, भात पकस्यो सुगंधी सासि ॥६४॥ सुरहि घ्रित महा मिरदोष, जिमत होइ बहुत संतोष । सिस्वरणि दही घोल बह खीर, भवसवंत मिभौ घरवीर ॥६॥१४॥