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महाकवि ब्रह्म रायमल्ल
पाण्डुलिपि हुई थी तो चन्द्रकीति लस समय भट्टारक थे।' इस ग्रन्थ की पार्श्वनाथ के मन्दिर में प्रतिलिपि हुई थी। लिपिकार ने प्रशस्ति में राजा भगवन्तदास एवं भट्टारक चन्द्रकीति दोनों का उल्लेख किया है। इसके एक वर्ष पश्चात् ही मालपुरा ग्राम में जयमित्रहल के वर्षमान काव्य (अपभ्रंश) की प्रतिलिपि हुई थी। वहाँ श्रावकों की प्रच्छी बस्ती थी।
__ ब्रह्म रायमल्ल ने जब सांगानेर में प्रवास किया तो उस समय राजा भगवन्तदास ही वहाँ के शासक थे। सांगानेर उस समय व्यापार की दृष्टि से पूर्ण समृद्ध नगर पा । सभी तरह का व्यापार था तथा नगर में मुख शान्ति व्याप्त थी। निधन एर मुह समाज के कारन ही न गद पता गितारी पी। संवत् १६३५ में मालपुरा ग्राम में "द्रव्य संग्रह वृत्ति" ग्रन्थ को प्रतिलिपि की गयी थी। प्रतिलिपि करने वाले साह कर्मा गंगवाल ने लिखा है कि उस समय यद्यपि भगवन्तास राजा थे लेकिन मानसिंह ही उनकी ओर से राज्य का शासन चलाते थे।'
राजा जगन्नाथ राव राजा जगन्नाथ टोडारायसिंह एवं रणथम्भोर के शासक थे। ये भामेर के कछाबा शासको में से थे । बादशाह अकबर की इन पर पूर्ण कृपा पी। इन्होंने महाराणा प्रताप के विरुद्ध कितने ही युद्धों में भाग लिया था।
ब्रह्म रायमहल अपनी राजस्थान बिहार के अन्तिम चरण में संवत् १६३६ में टोडारायसिंह पहुंचा था । यहीं पर महाकवि ने परमहंस चौपई की रचना की थी। प्रस्तुत चौपई उनकी अन्तिम रचना है । महाकवि ने टोडारायसिंह का जैसा वर्णन किया है उससे पता चलता है कि राजा जगन्नाथ वीर एवं प्रतापी शासक थे तथा दान देने में वे जरा भी कंजूसी नहीं करते थे । राजा जगन्नाथ के शासन काल में ही टोडारायसिंह नगर के आदिनाथ चैत्यालय में पुष्पदन्त के आदिपुराण की प्रतिलिपि की गयी थी । जो भट्टारक देवेन्द्रकीति को भेंट देने के लिये लिखी गयी थी।
१. प्रशस्ति संग्रह-पृष्ठ संख्या १५८ २. वही, पृष्ठ संख्या १७० ३. परजा लोग सुखी सुखी सुख, दुखी दलिद्री पुरवे पास ।। ४, राजस्थान के जैन शास्त्र भण्डारों की ग्रन्थ सूची चतुर्थ भाग, पृष्ठ संख्या २४ ५. राज कर राजा जगन्नाथ, दान देत न खींचे हाथ । ६. प्रशस्ति संग्रह-डॉ० कासलीवाल, पृष्ठ ८९