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सामाजिक स्थिति
थी । धनपति और कमलश्री के विवाह का वर्णन भी इसी प्रकार का है
मेदिक बात मन में चिस्वई, पुत्री धनपति जोग व दई ॥ मण्डप वेदी रथया विसाल, तोरण मंध्या मोती माल ।।२७।।
बहु पक्ष बहु मंगलधार, कामिणि गावे गीत सुधार । वर कन्या कोरहो सिंगार, चोवा चंदन वस्त्र अपार ॥२८॥1
मा निमार कोरबा कन्या के बांभयो मोज । वेदी मंडप विप्र प्राइयो, पर कन्या हथलेवो दियो ।
खुवै पक्ष र वैट्टा वाति, भयो विवाह अग्नि दे सालि ।। पुत्रो बरन विन्ही मान, कंचन वस्त्र मान सनमानु |॥२९॥
समाज में शिक्षा का प्रचार था । सात वर्ष के बालक को पढ़ने भेज दिया जाता था। भविष्यदत्त चौपई में सात वर्ष के भविष्यदत्त को पढने भेजने के लिया लिखा है।' जैन समाज व्यापारिक समाज था । वह राज्य सेवा में जाने की अपेक्षा म्यापार करना अधिक पसन्द करता था। २० वर्ष से भी कम आयु के मवयुवक श्यापारी देश एवं विदेश में व्यापार के लिये निकल जाते थे। वे समूहों में जाते। बंधुदत्त एवं धवल सेठ के काफिले में सैकडों म्यापारी नवयुवक थे।'
दहेज
विवाह में कन्या पक्ष की ओर से दहेज देने की प्रथा थी। दहेज को 'डाइजा' कहा जाता था । श्रीपाल, भविष्यदत्त, पवनंजय सभी को दहेज में अपार सम्पत्ति मिली थी। दहेज में हाथी, घोड़ा, स्वर्ण, वस्त्राभूषण, दास, दासी और कभी-कभी भाषा राज्य भी दे दिया जाता था । लेकिन यह सब स्वत: ही दिया जाता था । बर पक्ष की ओर से कोई मांग नहीं होती थी। यह अवश्य है कि उस समय भी मातापिता को अपनी लडकी के लिये अच्छे वर प्राप्त करने की चिता रहती थी । अंजना
१. बालक सात वर्ष को भयो, पंडित मागे पदणी दियो । --भविष्यदत्त चौपई । २. प्रस्व हस्ती बहु डाइजो हो, बस्त्र पटवर बहु भाभणे ।
दासी दास दीया धणा हो, मणि माणिक्य जच्या सोवर्ण । श्रीपाल रास