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वीर रस वर्णन
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हो प्रसगरो मार प्रसवारो, हो रथ सेथी रथ जुरे झुझारो। हस्ती स्यो हस्ती भिडे जो, हो घगौ कहो तो होई विस्तारौ ।७४।
-प्रय म्नरात श्रीपाल को भी राज्य प्राप्ति के लिए अपने ही काका वीरदमन से युद्ध का सहारा लेना पड़ता है। दोनों हार में एक की माटी होती है जगी का एक वर्णन देखिए
हो भाटि मानियो रण संग्राम, प्रायो कोडी भज के ठाम | वास पाहिली सह कही, हो सिंघमा बजिया निसारण ।
सर किरणि अझ नहीं हो उडी खेय लागी प्रसमान १५७। हो घोडा भूमि खणे खुरसाल, हो जाणिकि उखटिश मेघ प्रकाल । रथ हस्ती बहु साखती, हो गई पक्ष को सेना घाली। सुभट संजोग संभालिया. हो पणी दुई राजा को मिली ।।८।
भविष्यदत्त तो श्रेष्ठ पुत्र था । लेकिन उसकी स्त्री को ही समपित करने के लिए पोदनपुर के राजा के दूत ने जब जोर दिया तो युद्ध के अतिरिक्त कोई चारा नहीं रहा । भविष्यदत्त स्वयं रणभूमि में उतरा और मुद्र में विजय प्राप्त की । इस मुख का एक वर्णन निम्न प्रकार है
मात र बहुत भाजि बी पोति, वंति तिसो ले छुनौ मोठि । एक सुभठ रण प्रायो सरं, तूटो सिर ठाडो घर फिर ।। एक सुभट के इहै सुभाउ, भागा मोग न घाल घार । जो प्रांनी अधिक असमान, भह रणो हा गिध मसारण ।।
ब्रह्म रायमल्ल के काल्यों के सभी नायक बीर हैं। लेकिन क्षमा, धर्म उनके जीवन में उतरा हुप्पा होता है। श्रीपाल भी समुद्री चोरों को बिना दपर दिये ही छोड़ देता है जो उसके दया भाव उदाहरण है
हो छोड्या घोर बिनो बहु कोयो, धया भाउ करि भोजन बोयो । मन पच काय मा करी हो हाथ जोडि बोल्या सह पोर । तुम समान उत्तम नहीं, हो हम पापी लोभी घण घोर ।।२।