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महाकवि ब्रह्म रायमल्ल
इसी प्रकार के और भी प्रसंग ब्रह्म रायमरुल के काव्यों में मिलते हैं । यद्यपि जन हिन्दी काव्यों का प्रमुख उद्देश्य शृङ्गार रस का वर्णन करना नहीं रहा है और उन्होंने अपने काव्यों में उसे विशेष महत्व भी नहीं दिया है किन्तु प्रसंगवश संयत शब्दों में श्रृंगार रस का वर्णन यत्र-तत्र अवश्य मिलता है।
वीर रस वर्णन हिन्दी जैन काव्य शान्त रस प्रधान है। उनके नायक एवं नायिका युद्ध से मदेव बपने का प्रयास करते हैं । यद्यपि श्रीपाल, नेमिनाथ, राजुल, हनुमान सभी क्षत्रिय कुमार हैं तथा नेमिनाथ के अतिरिक्त वे शासन भी करते हैं लेकिन वे युद्धप्रिय नहीं होते हुए भी युद्ध से घबरा कर भागते नहीं है और आवश्यकता पड़ने पर युद्ध का सहारा भी लेते हैं । इन काव्यों में ऐसे प्रसंग कितने ही स्थान पर पाते हैं जहाँ कवि को युद्ध का वर्णन करना पड़ता है। भविष्यवत तो श्रेष्ठ पुत्र होने पर भी युद्ध में विजय प्राप्त करता है ।
युद्ध के सबसे अधिक प्रसंग प्रद्युम्न के जीवन में प्राते हैं लेकिन प्रत्येक बार ही निर्णामक युद्ध होने के पूर्व ही शान्ति हो जाती है। लेकिन उससे प्रद्युम्न के युद्ध कौशल अथवा वीरता पर कोई भांच नहीं पाती । वह अपने शत्रु को उसी प्रकार ललकारता है तथा युद्ध की तैयारी करता है। प्रद्युम्न तो अपने पिता श्रीकृष्ण जी से भी युद्ध भूमि में ही अपनी बीरता दिखाने के पश्चात् मिलता है। प्रद्युम्म श्रीकृष्ण सहित बलराम और पांचों पाण्डवों को जिन शब्दों में युद्ध के लिये ललकारता है वे वीर रस से ओत-प्रोत है
हो परजन कहै घनष घरा ए, हो तेहि वैराटि छुड़ाई गाए । जबल छ तो पाई ज्यो जी, हो भीम मल्ल तुम्ह बड़ा भारी। रूपिणि वाहर लागि ज्यौ मी, हो के रालि घो गया हथियारो।३९। हो निकुल कुम्भ सोभ तुम्ह हाथे, हो कहि ज्यो बली पाडा साथे। अब बल देखो तुम्ह तरणो जो, हो सहदेव ज्योतिग जागे सारो।
कहिं रूपिणि किम छुटी मी जो, हो इहि ज्योति को कर विचारों।
प्रद्युम्न केवल शत्रु को लड़ाई के लिये ललकारता ही नहीं है किन्तु घनघोर युद्ध के लिये भी अपने प्रापको प्रस्तुत करता है
विद्या बल सह संजोईया जी, हो पहिलो चोट पयावा पाई। पाछे घोडा घालीया ओ, हो रड मुंबप्रति भई लाई ।७३।