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________________ शृङ्गार परक वर्णन मरने से तो उल्टा पाप लगता है । इसके अतिरिक्त उस तरह मरने का भी क्या अर्थ है जिसको कोई लकड़ी देने वाला ही नहीं। ब्रह्म रायमल्ल ने अपने काव्यों में शृङ्गार रस की और भी चुटकियां ली है। रुक्मिणी जब नाग पूजा के लिए उद्यान में गयी तो वहीं नाग बिब के पीछे ही कृष्ण जी बैठे हुए थे। दोनों के नेत्र से नेत्र मिलते ही एक-दूसरे में प्रेम हो गया । संभोग शृङ्गार ब्रह्म रायमल्ल ने अपने काब्यों में संभोग द्वार का भी असहा वर्णन किया प्रद्युम्न की सुन्दरता पर कचनमाला मुग्ध हो जाती है और उसके साथ अपनी काम पिपासा पान करना चाहती है तथा उसे पाल कला कर निलंज बन कर सब कुछ करने की प्रार्थना करती है हो भरणा मयणस्यौं घोचो लरजो हो, करि कुमार मन वाछित काजो। हम सरि कामणि को नहीं जी । ध्यान धरते हुए सेठ सुदर्शन को प्रभया रानी के महल में ले जाया जाता है । वहां अभया रानी विनयपूर्वक सेठ से संभोग की जिस तरह इच्छा प्रकट करती है यह तो लज्जा की सीमा को हो पार करना है। प्रभया रानी पहसे तो राग-रंग करती है और फिर सुदर्शन से इच्छानुसार काम-क्रीड़ा करने के लिए कहती है । महो पाई भी प्रभया जौ, बैठी हो पासि, रंग का वचन प्रति कहे जीवा सासि । सफल जनम स्वाभो तुम कोयो, महो अब हम उपरी कीजे हो भाउ । सुख मन बाँछित भोगऊ, स्वामी माणस जनम को लीजे हो लार १२३ १. महो असा जी वाराह मास कुमार रिति रिति भोग कीजै प्रतिसार । पाबता जन्म को को गिण, महो घर में जी नाज नावाने जी होय । पापि लांघण करि मरी, स्वामि मुवा थे लाकडी देई न कोई । १७॥ -नेमीश्वररास २. हो सुणी बात हसि तं खिणा उठिङ नेत्र नेत्रस्यो मिलि गया जी ।४३। ---प्रधुम्नरास
SR No.090269
Book TitleMahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages359
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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