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महाकवि ब्रह्म रायमल्ल
प्रकृति वर्णन जैन कवियों को प्रकृति वर्णन रादा अभीष्ट रहा है । महाकवि रल्ह ने अपने जिनदत्तचरित में स्थान-स्थान पर वृक्ष, लता एवं पुरुषों का बहुत ही उत्तम वर्णन किया है । ब्रह्म रायमल ने भी अपने काव्यों में अवसर मिलते ही प्रकृति का जो चित्रण किया है उससे काव्य की महत्ता में तो वृद्धि हुई ही है साथ ही वह कवि के विशाल ज्ञान का भी परिचायक है । कवि ने जिन काव्यों में प्रकृति चित्रण किया है उनमें भविष्यदत्त चौपई एवं हनुमंत कथा ये दो प्रमुख काव्य है ।
विद्याधरों के देश प्रादितपुर के चारों ओर घना जंगल था। विविध प्रकार के वृक्ष थे । नदी और सरोवर थे जिनमें कमल खिले हुए थे। कुबे और बावडियां श्रीं ओ जल से प्रोत-प्रोत थी । कवि ने कितने ही वृक्षों के नाम गिनाये है जो उस नगर की शोभा बढ़ात थे।
थन को सोभा अधिक विस्तार, राइ णिमहु वाती टूचार । धील कडह धोकं थकरीर, नौब के बगुल मणि गहोर ।। सालरि स्वरवास काविडा, सोसौं सागवान श्रद्धा । कर्पर धामण वेर सुचंग, नींबू, जांबू पर मालिग ।। प्रमृतफल कटहल बहु केलि, मंडप चढौ वास को केली । दार हरद प्रावला पतंग, चोच मोच नारिंग सुरंग ।। धोल, सुपारी कमरख धरणी, निब जां पावा फाण संचिचिणी । मिरी बिदाम लौंग प्रखरोट बहत जायफल फली समोट ।७। कुजो परयो साटौ जाई, चेलि सिंहाली चंपी राह ।
जुही पाडल बौलश्री कंद, चंबोलोक नयर सुचकंद ।। सिरकव करणी कर बीर, चंदन अगर तह बाल गहीर । केतकी केबढी बड़ी सुगंध, भमर बास रमहि प्रति प्रध ।
अंजना को गर्भ रहने पर उसकी सास ने घर से निकाल दिया । पिसा के घर गयी लेकिन वहां भी उसे सहारा नहीं मिला । अन्त में उसने बन की राह ली । जो