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महाकवि भूधरदास : करते हए आचरण या व्यवहार की श्रेष्ठता पर बल दिया। साथ ही मात्र कथनी करने वाले पंडितों की उपेक्षा की। पंडितों की कथनी तथा ज्ञान के प्रति कबीर की निम्नांकित पंक्तियाँ अति मननीय हैं - (1) पंडित केरी पोथिया, ज्यों तीतर का ज्ञान ।
औरन सगुण बतावहीं, आपन फन्द न जान।। (2) पंडित और मसालची, दोनों सूझै नाहि ।
औरन को करै चांदना, आप अंधेरे माहिं ।। इसी प्रकार कबीर ने पुस्तकीय ज्ञान की निरर्थकता को निम्नलिखित शब्दों में बतलाया है -
. पोथी पढ़ि पढ़ि अग मुआ, पंडित भया न कोय।
ढाई आखर प्रेम का, पढ़ें सो पंडित होय॥ इस प्रकार सन्त कथनी - करनी के ऐक्य के समर्थक तथा आचरण या व्यवहार के पक्षपाती हैं। उनकी रहनी के विषय में डॉ. राजदेवसिंह का यह कथन द्रष्टव्य है - "सहज ढंग से विषयों को छोड़ देना ही सन्तों की सहजता है। सन्त इसी सहजता के पक्षधर हैं। स्पष्ट है कि सन्तों की सहजता करनी और रहनी का विषय है। वैसे कथनी का विषय यह कभी नहीं रही। ....... सन्तों का सहज, उनकी रहनी को पारिभाषित करता है । विषयासक्ति का त्याग, तन और मन की पवित्रता, भगवान के प्रति एकान्तनिष्ठा, कथनी और करनी का अभेद - सन्तों की रहनी के ये ही मूल आधार स्तम्भ है ।" 1
17. समन्वय एवं समाज सुधार की भावना • प्रतिनिधि सन्त कवि कबीर के समय देश की राजनैतिक, सामाजिक, धार्मिक आदि परिस्थितियाँ विशेष प्रकार की थी। दिल्ली सुलतानों ने हिन्दुओं के ऊपर अत्याचार किये ।लोगों को बलात् मुसलमान बनाया । समस्त समाज में मौलवियों, मुल्लाओं, पण्डितों तथा पाखण्डी साधुओं का जोर था। धार्मिक क्षेत्र में एक दूसरे के प्रति शत्रुता बहुत गहरी होती चली जा रही थी । ऐसे समय में कबीर ने हिन्दू मुसलमानों में एकता स्थापित करने, विभिन्न धर्मों में समन्वय करने का प्रयास किया तथा समाज में व्याप्त पाखण्ड, रूढ़िवादिता, जातिवाद व साम्प्रदायिकता का घोर विरोध किया ।
1, सन्तों की सहज साधना- डॉ. राजदेव सिंह पृष्ठ 110