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________________ एक समालोचना अध्ययन सन्त कवियों के उपदेशों में विधि और निषेध दोनों पक्षों का समन्वय हुआ । जहाँ एक ओर उन्होंने निर्गुण ईश्वर, राम नाम की महिमा, सत्संगति, भक्ति भाव, परोपकार, दया, क्षमा आदि का वर्णन करते हुए इनका समर्थन पूरे उत्साह से किया है, वहाँ दूसरी ओर मूर्तिपूजा, धर्म के नाम पर की जाने वाली हिंसा, तीर्थ, व्रत, रोजा, नमाज आदि धार्मिक विधि विधानों, बाह्याडम्बरों, जातिपाँति का भेदभाव आदि की आलोचना करते हुए डटकर विरोध किया है। सन्त कबीर ने हिन्दुओं और मुसलमानों में समन्वय करने का पूर्णतया प्रयास किया। कबीर ने जातिगत, वंशगत, धर्मगत, संस्कारगत, विश्वासगत और शास्त्रगत रूढ़ियों, परम्पराओं तथा अन्धविश्वासों के माया जाल को बुरी तरह छिन्न भिन्न कर दिया था । 49 जहाँ वे एक ओर पण्डितों को खरी खोटी सुनाते हैं तो दूसरी ओर मुल्लाओं की कटु आलोचना करते हैं। एक और मूर्तिपूजा, तीर्थ यात्रा आदि को सारहीन बताते हैं, तो दूसरी ओर नमाज, रोजा, हज आदि की निरर्थकता सिद्ध करते हैं। वे कहते हैं अरे इन दोउन राह न पाई । हिन्दुन की हिन्दुआई देखो, तुरकन की तुरकाई ॥ मूर्ति पूजा के प्रति कबीर का कथन है (1) दुनिया ऐसी बावरी, पाथर पूजन जाय । घर की चक्रिया कोई न पूजै, जेहि का पीसा खाय ॥ पाहन पूजै हरि मिलें, तो मैं पूजो पहार । तातै यह चक्की भली, पीस खाय संसार । नमाज के प्रति कबीर कहते है - मस्जिद लई बनाय । काँकर पाथर जोरि के, ता चढि मुल्ला बाँग दे, क्या बहरा हुआ खुदाय ॥ जातिवाद का विरोध करते हुए कबीर ने कहा है - (1) " जाति पाँति पूछे नही कोई, हरि को भजे सो हरि का होइ।" (2) जौ तू वामन बमनी जाया, तो आन बाट हवै क्यों नहीं आया। तू तुरक तुरकनी जाया, तो भीतर खतना क्यों न कराया ॥ जौ (2)
SR No.090268
Book TitleMahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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