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________________ महाकवि भूधरदास : इस काम ने किस किस को नहीं ठगा ? सनक सनन्दन, शिव, शुकदेव, ब्रह्मा, विद्वान लोग जोगी, जटाधारी सभी इसके सामने परास्त हो गये। वैसे तो सभी इन्द्रियों के विषयों का ग्रहण काम के अन्तर्गत होता है, परन्तु अपने विशिष्ट अर्थ में यह स्त्री-पुरुष विषयक आसक्ति का सूचक है । सन्त इस काम के कट्टर विरोधी हैं । वे मानते हैं कि जिसने इस काम को जीत लिया वही ज्ञानी और सिद्ध है। यह काम विजय ही सरलता देने वाली है। चूंकि स्त्री काम की प्रेरक एवं सहायक है; अत: सन्तों ने उसे माया स्वरूप कहकर विष की बेलि, नरक का द्वार आदि प्ररूपित करते हुए उसकी तीव्र आलोचना की है। प्राय: सभी सन्तों ने स्त्री को काम का साधन स्वीकार कर उसके प्रति निन्दापरक दृष्टिकोण अपनाया है। 8. माया की निन्दा - सन्तों ने माया शब्द के प्रयोग द्वारा विषय तृष्णा, कामपरता, कनक कामिनी, धन-मान, अहंकार, लाभ, मोह, स्वार्थ, सत्व, रज, तम आदि अनेक अर्थों का बोध कराया है। वे माया के विद्या अविद्या, सत्-असत् तथा अनिर्वचनीय जैसे भेदों के चक्र में न पड़कर उपर्युक्त अर्थों का वाचक मानकर ही उसे अपनी सिद्धि में बाधक स्वीकारते हुए उसे त्यागने की प्रेरणा देते हैं। स्थूल रूप में वे लौकिक और आध्यात्मिक उत्कर्ष के मार्ग की हर छोटी-बड़ी बाधा को माया कह देते हैं । सन्तों के अनुसार जगत इन्हीं हीनतर आसक्तियों का परिणाम है। जीव इन्हीं के बन्धनों से बंधे हैं। ये सब ही जीव को सहज नहीं होने देते । निर्वाण में यह सबसे बड़ी बाधा है । विषय-तृष्णा के अर्थ में माया का प्रयोग बहुतायात से हुआ है। डॉ. राजदेवसिंह का कथन है कि - "सन्त साहित्य में माया के लगभग 95 प्रतिशत प्रयोग विषयासक्ति को ही माया मानने-मनवाने का आग्रह करते हैं।” सन्तों ने कामिनी के लिए भी माया शब्द का प्रयोग किया है। कामिनी के रूप में माया मोहिनी है। ज्ञानी-अज्ञानी सबको वह मोह लेती है। ऐसे खींच-खींच कर बाण मारती है कि भागने पर भी नहीं छोड़ती। कबीर कनक और कामनी को विषफल मानते हैं,जिनके खाने से तो मौत हो ही जाती है; परन्तु 1. कबीर ग्रन्थावली तिवारी पृष्ठ 43 पृष्ठ 77 2. पंचग्रन्थी पृष्ठ 299 साखी 77 3. कबीर ग्रन्थावली विवारी पृष्ठ 242 साखी 3 4. सन्तों की सहज साधना-डॉ. राजदेव सिंह पृष्ठ 213 5 . वही पृष्ठ 213 6. कबीर ग्रन्थावली तिवारी पृष्ठ 235 साखी 4
SR No.090268
Book TitleMahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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