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________________ महाकवि भूधरदास : कबीर कहते हैं - त्रिस्ना अग्नि प्रलय किया, तृप्त न कबहूं होय । सुर नर मुनि और रंक सब भस्म करते है सोय ।।' जो वन में जाकर इन्द्रियों के दमन की साधना नहीं कर सका, वह विषयों में लिप्त रहकर क्या निर्लिप्त रहेगा ? जब उच्च श्रेणी के साधक सनक सनंदन, शिव, विरंचि, अनेक बुद्धिमान लोग, योगी, जटाधारी आदि ' भी इस तृष्णा से नहीं बच सके तो फिर हीन कोटि का मायासक्त संसारी इससे कैसे बच सकता है ? परिणाम यही होता है कि पंचकार गुणों के मुका अभे) के समर्थक सहज सहज कहते रहते हैं और "सुत बित कामिनि काम" के पीछे बेहताशा भागते रहते हैं - सहज सहजै सब गए, सुत बित कामिनि काम। एकमेक हवै मिलि रहर, दास कबीरा राम॥' परन्तु सन्त उसे सहज कहते हैं; जिसमें विषयों का त्याग हो - सहज सहज सब कोई कहै, सहज न चीन्हें कोई । जिन सहजै बिखिया तजी, सहज कहावै सोई॥* आशा-तृष्णा को जो छोड़ नहीं सका उसे सन्तों ने कभी सुखी रूप में नहीं देखा। इन्द्रिय-विषयों का त्याग, काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि से विरक्ति भौतिक सुखों के परित्याग बिना कोई कभी सच्चा सुख-शान्ति प्राप्त नहीं कर सका । अत: सन्तों ने इसके त्याग की प्रेरणा दी है। 7. नारी के वासनात्मक रूप की निन्दा - सन्तों ने जहाँ एक ओर विषय - भोग की निन्दा की है, वहाँ दूसरी ओर विषय भोग का निमित्त साधन या सामग्री स्त्री की भी कटु आलोचना की है। सन्त जहाँ एक ओर काम क्रोधादि को त्याज्य बतलाते हैं, वहाँ दूसरी ओर वे उनके साधनों को भी हेय प्ररूपित करते हैं। 1. कबीर ग्रन्थावली तिवारी पृष्ठ 25 2 बही पृष्ठ 25 पद 43 3. वही पृष्ठ 243 साखी 3 4. वही साखी
SR No.090268
Book TitleMahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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