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महाकषि भूधरदास : धनप्राप्ति के सम्बन्ध में सन्त सुन्दरदास का यह कथन अति माननीय है -
तु कुछ और विचारत है नर, तेरा विचार पर्यो ही रहेगी। कोटि उपाय करे धन के हित, भाग लिख्यो तितनो ही लहैगो । भोर कि सांझ घरी पल मांझ सु, काल अचानक आये रहैगो ।
राम भज्यो न किये कछु सुकिरित, सुन्दर यूं पछिताई रहैगो ।' जीवन की क्षणभंगुरता निम्नलिखित पंक्तियों में द्रष्टव्य है - । गारी केरा गुदखुला, जर भागुष्म की जा
देखत ही छिप जायेगा, ज्यों तारा परभात ।। 2 2 कबीर थोड़ा जीबना, मांडे बहुत मदान ।
सबहि उभा में लगि रहा, राव रंक सुलतान ।' 3 का मांगू कुछ थिर न रहाई। देखत नैन चला जग जाई ॥
एक लखपूत सवा लख नाती। ता रावन घर दिया न बाती ।।
लेका सा कोट समुद सी खाई। ता रावन की खबर न पाई ॥ 4 यह तन कांचा कुंभ है लिये फिरे था साथ।
टपका लागा फूटिया कछु नहीं आया हाथ ।।
इस मानव शरीर को पाकर चौरासी लाख योनियों में पुनः पुन: चक्कर न खाना पड़े। अत: सम्पत्ति के चक्कर में न पड़कर भगवद्भजन करना ही श्रेयस्कर है। सहजोबाई का कथन है -
धन जीवन सुख सम्पदा, वारद की सी छाहिं। सहमो आखिर धूप है चौरासी के माहिं ।। चौरासी योनि भुगत, पायो मनुष्य शरीर ।
सहो चूके भक्ति बिनु, फिर चौरासी पीर ।। पलटू साहब का मानव मात्र के लिए उद्बोधन है -
पलटू नर तन पाइ के, पुरख भजन राम।
कोऊ ना संग जायगा, सुत दारा धन धाम ॥' 1. सुन्दरदास सन्तबानी संग्रह भाग 1 2, क्रमांक 2 से 7 सन्तबानी संग्रह भाग 1