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________________ 27 एक समालोचनात्मक अध्ययन काम बलवान तह प्रेम कह पाइए, प्रेम जहं होय तह काम नाहि । कहै कबीर यह संत विचार है सम्झ विचार कर देख माहीं।' कामिनी के अंगो के प्रति विरक्ति हरि में अनुरक्ति की पहली शर्त है।' हरि सारे अपराध माफ कर सकता है किन्तु कामिनी में आसक्ति माफ नहीं कर सकता ।' कामियों ने हन्दिय विषयों के स्वाद के णछे भक्ति को भी विकृत कर दिया है। कामी को कितना ही समझाओ कुबुद्धि नहीं जाती, वह निरन्तर विष , (विषय-वासना, जहर) की तलाश में रहता है । अमृत (भक्ति सुधा) उसे पसन्द ही नहीं आता है।' प्रेम का मार्ग वीरों का मार्ग है, कायरों का नहीं। प्रिया या प्रेमी के साथ कोने में पड़े रहकर मुक्ति नहीं मिलती, इसके लिए इन्द्रियों से खुले आम जूझना पड़ता है । " मन से जूझना पड़ता है। काम क्रोध से जूझना पड़ता है। जो शूर है, वह एक तरफ से लड़कर सब तरफ से लड़ता है। परम प्रिय सच्चाई से मिलता है, चतुराई से नहीं। उसे पाने के लिए लोभ, लोकाचार, काम, क्रोध और अहंकार का त्याग जरूरी है - चतुराई न चतुरभुज पड़ी। जब लगि मन माधौ न लगइऔ।' परिहरू लोभ अरू लोकाचारू । परिहरू काम क्रोध हंकारू । कहै कबीर जो रहे सुभाई। भौरे भाव मिलै रघुराई ।। 10 सन्तों ने दुनिया की चतुराई को अच्छी तरह से समझा था, वे उसे आग लगाने लायक मानते हैं । लोग अधिक से अधिक धन कमाने को चतुराई समझते हैं। वे इतना धन चाहते हैं कि स्वयं भी खाए और अगली पीढ़ियों का व्यवसाय भी चल सके - जारों मैं या जग की चतुराई। राम भजन नहिं करत वाबरे , जिनि यहु अगत बनाई ॥ माया जोरि जोरि करे इकठी.हम खैहें लरिका व्यौसाई। सो धन चोर मूसि लै जावै , रहा सहा ले जाई जंवाई॥" 1. कबीर : द्विवेदी पृष्ठ 259 : 37 2, कबीर ग्रन्थावली,तिवारी पृष्ठ 158 : 41 3. वही पृष्ठ 233 : 13 4 . वहीं पृष्ठ 233 : 14 5. वही पृष्ठ 234 : 21 6 . कबीर ग्रन्यावली, तिवारी पृष्ठ 179 : 6 7 वही पष्ठ 180 10 वही पष्ठ 1401 वही पष्ठ 18 180:9 10. कबीर ग्रन्थावली, तिवारी पृष्ठ पद 77 11. कबीर ग्रन्यावली, तिवारी पद 164
SR No.090268
Book TitleMahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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