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एक समालोचनात्मक अध्ययन
भावपक्ष और कलापक्ष की अनेक विशेषताओं के साथ भूधरदास के दार्शनिक विचारों में जगत (विश्व) जीव, अजीव (पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल ) आस्व बन्ध के रूप में संसार के कारण तत्त्व या मुक्तिमार्ग के बाधक तत्त्व, संवर- निर्जरा के रूप में संसार के नाशक या मोक्षमार्ग के साधक तत्त्व, मोक्ष के रूप में साध्यतत्त्व, वस्तुस्वरूपात्मक अनेकान्त एवं उसका प्रतिपादक स्याद्वाद, निश्चयनय व व्यवहारनय, सप्तभंगी, पंचास्तिकाय, प्रदेश एवं उनकी सामर्थ्य, हेय - ज्ञेय - उपादेय तत्त्व, पुनर्जन्म एवं कर्मसिद्धान्त आदि का वर्णन है।
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धार्मिक विचारों में धर्म का सामान्य स्वरूप, सम्यग्दर्शन- ज्ञान- चारित्र रूप धर्म का वर्णन, सम्यग्दर्शन के कारण देव शास्त्र, गुरु, भेदविज्ञान, आत्मानुभूति आदि कथन, सम्यग्चारित्र के सकल चारित्र और देशचारित्र भेद करके सकल चारित्र के अन्तर्गत मुनिधर्म के रूप में पाँच महाव्रत, पाँच समिति, तीन गुप्ति, पाँच इन्द्रियजय, छह आवश्यक, सात शेषगुण, बारह भावना, दस धर्म, बाईस परीषह, बारह तप, सोलहकारण भावनाओं का विवेचन है। देश चारित्र में अष्ट मूलगुण का पालन, सप्तव्यसन का त्याग ग्यारह प्रतिमाओं का स्वरूप एवं बारह व्रतों का पालन करने का विधान है।
नैतिक विचारों में सज्जन, दुर्जन, कामी, अन्धपुरुष, दुर्गतिगामी जीव, कुकवियों की निन्दा, कुलीन की सहज विनम्रता, महापुरुषों का अनुसरण पूर्वकर्मानुसार फलप्राप्ति, धैर्य धारण का उपदेश होनहार - दुर्निवार, काल सामर्थ्य, राज्य और लक्ष्मी, मोह, भोग एवं तृष्णा, देह, संसार का स्वरूप, समय की बहुमूल्यता, मनुष्य की अवस्थाओं का वर्णन एवं आत्महित की प्रेरणा, राग और वैराग्य का अन्तर व वैराग्य कामना, अभिमान निषेध, धन के संबंध में अज्ञानी का चिन्तन, धनप्राप्ति भाग्यानुसार, मन की पवित्रता, हिंसा का निषेध, सप्तव्यसन का निषेध, मिष्ट वचन को प्रेरणा, मनरूपी हाथी का कथन आदि विषयों का वर्णन किया गया है।
भूधरदास हिन्दी सन्तों के निकटवर्ती हैं। अतः हिन्दी सन्तसाहित्य के सभी सन्दर्भों में भूधरसाहित्य का समालोचनात्मक अध्ययन करते हुए भूधरसाहित्य और सन्तसाहित्य की समानताओं और असमानताओं के उल्लेखपूर्वक भूधरदास का मूल्याकंन किया गया है। यह मूल्यांकन हिन्दी साहित्य के विकास में जैन कवियों का योगदान सिद्ध करता है तथा भूधरदास के योगदान को भी रेखांकित करता है ।