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महाकवि भूधरदास
नायक पार्श्वनाथ, मध्यम चरित्र के रूप में अनेक राजपुरुष तथा जघन्य चरित्र के रूप में कमठ के जीव का वर्णन । नायक पार्श्वनाथ के चरित्र के माध्यम से भक्ति भावना की अभिव्यक्ति । भक्ति भावना के द्वारा धार्मिक एवं आध्यात्मिक भावना की पुष्टि, संसार शरीर व भोंगों से विरक्ति तथा नैतिक मूल्यों की स्थापना । धार्मिक एवं नैतिक मूल्यों की स्थापना के लिए दया, क्षमा, मैत्री, अहिंसा, सत्य, संयम, तप, त्याग आदि अनेक विषयों पर बल देते हुए सार्वकालिक, सार्वभौमिक एवं सार्वजनिक आदर्शों की प्रेरणा ।
3. रस निरूपण द्वारा रति, वात्सल्य, निर्वेद, क्रोध, घृणा आदि सभी मानवीय भावों का वर्णन तथा शान्तरस को प्रमुखता ।
4. प्रकृतिचित्रण के अन्तर्गत प्रकृति के आलम्बन और उद्दीपन के परम्परागत रूपों के अलावा मुनिराज द्वारा बाईस परीषहों को सहन करने अर्थात् उन पर विजय प्राप्त करने के सन्दर्भ में प्रकृति या प्राकृतिक दृश्यों या रूपों का वर्णन |
सम्पूर्ण भावों, विचारों, कथ्यों या वर्ण्यविषयों की तत्कालीन साहित्यिक एवं लोक प्रचलित ब्रजभाषा में अभिव्यक्ति । बजभाषा में सरलता, सहजता, माधुर्य, लालित्य, सौकुमार्य, कलात्मकता आदि अनेक गुणों का होना ।
6. . लोक जीवन के विशिष्ट शब्दों, मुहावरों, लोकोक्तियों, उपनामों आदि के प्रयोग द्वारा भाषा की विशिष्ट समृद्धि अनेक छन्दों, राग-रागनियों एवं शैलियों का प्रयोग, दाल के रूप में देशी संगीत का विधान, लोक संगीत के अर्न्तगत टेक शैली की प्रमुखता, अनेक प्रकार के अलंकारों का सहज प्रयोग आदि है ।
मुक्तक काव्य में समाहित जैनशतक, पदसंग्रह और अनेक फुटकर रचनाएँ भी अपनी-अपनी भावगत एवं कलागत विशेषताओं से युक्त हैं। जैनशतक एक सुभाषित कृति है। इसमें जैनधर्म और उससे सम्बन्धित स्तुति, नीति, उपदेश, वैराग्य आदि का सुन्दर वर्णन हैं। पदसंग्रह के कई पद जिनदेव, जिनगुरु, जिनवाणी एवं जिनधर्म से सम्बन्धित हैं तथा कई पद आध्यात्मिक भावों से युक्त हैं । इसप्रकार भूधरदास के समस्त पद भक्तिपरक, नीतिपरक अध्यात्मपरक, वैराग्यप्रेरक एवं उपदेशपरक हैं।
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