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महाकवि भूधरदास
9. सन्त काव्य का जो महत्त्व सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक दृष्टि से है, वह साहित्यिक दृष्टि से नहीं है; जबकि भूधरसाहित्य का महत्त्व उक्त सभी दृष्टियों से है ।
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10. सन्तों ने प्रायः महाकाव्य की रचना नहीं की है, जबकि भूधरसाहित्य ने जैन धर्म के तेईसवें तीर्थंकर पार्श्वनार्थ के चरित्र का चित्रण करने वाले “पार्श्वपुराण" नामक महाकाव्य की रचना की है। इस महाकाव्य की रचना में उन्होंने काव्यशास्त्र में मान्य महाकाव्य के लक्षणों का पूर्णतः निर्वाह किया है ।
11, सन्तों ने प्राय: गद्यात्मक रचनाएँ नहीं की; परन्तु भूधरदास ने “ चर्चा समाधान” नामक गद्य रचना भी की है। इसमे जैनधर्म एवं जैनदर्शन से सम्बन्धित कुछ प्रश्नों के उत्तर दिये गये हैं या चर्चाओं के समाधान प्रस्तुत किये गये हैं ।
12. सामान्यतः सन्तों ने कलापक्ष की उपेक्षा की है; जबकि भूधरसाहित्य का कला पक्ष भी दर्शनीय है ।
13. सन्तों ने मिश्रित या सधुक्कड़ी भाषा को अपनाया है; जबकि भूधरदास की भाषा मूलतः ब्रजभाषा है, जिसमें अन्य भाषाओं के शब्द भी पाये जाते हैं।
14. सन्तों ने जिस सहज साधना, सहज समाधि, योग साधना, रहस्यवाद एवं विरह का वर्णन किया है, भूधरसाहित्य में वह उस रूप में अनुपलब्ध है । परन्तु यह बात अलग है कि इन सबके लिए मन को मारना वश में करना इन्द्रियों के विषयों को छोड़ना, ध्यान एकाग्र करना आदि दोनों में समान रूप से पाया जाता है।
15. भूधरदास के अनुसार माया कुटिल भाव है; परन्तु सन्तों ने उसे कई रूपों में देखा और उसके अनेक नाम दिये।
16. दोनों में कर्मबन्ध और मुक्ति को समानरूप से मानकर भी उसके साधन एवं प्रक्रिया में भिन्नता दृष्टिगत होती है I