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________________ एक कन 435 17. साधु की व्याख्या दोनों साहित्य में पृथक् पृथक् है । 18. बाह्य शुद्धि एवं आहार आदि का विधान दोनों में भिन्न- भिन्न है। 19. भूधरसाहित्य में वेश्या का उल्लेख कहीं कहीं और एक निश्चित अर्थ में हुआ है; परन्तु सन्तसाहित्य में कई जगह और भिन्न-भिन्न अर्थों में हुआ है । 20. सन्त अशिक्षित या अर्द्धशिक्षित व निम्नवर्ग के गृहस्थ होने के साथ-साथ अपनी जाति, कुल या परम्परा के अनुसार व्यापार आदि लौकिक कार्यों में संलग्न, देश, काल, परिस्थितियों, अन्य मतों एवं दर्शनों से प्रभावित, बाहरी रूप या वेश-भूषा में विभिन्नता युक्त थे | परन्तु जैन सन्त शिक्षित एवं उच्चवर्ग के मुख्यतः साधु तथा गौणरूप से गृहस्थ व्यापारादि लौकिक कार्यों या भूमिकानुसार हिंसक कार्यों से निवृत्त, अन्य मतों से अप्रभावित, पूर्वपरम्परा अनुसार जैनधर्म के पोषक तथा बाहरी वेशभूषा में समानता लिये हुए थे 1 के उपर्युक्त समानताओं और असमानताओं को दृष्टि में रखते हुए भूधरसाहित्य और सन्तसाहित्य का तुलनात्मक अध्ययन अति महत्वपूर्ण है । जैनसाहित्य और सन्तसाहित्य' तथा जैन कवियों और सन्त कवियों का तुलनात्मक अध्ययन किया जा चुका है। 2 समग्र तुलनात्मक निष्कर्षो से यह प्रतिफलित होता है कि कबीर आदि सन्त जैनदर्शन के अत्यन्त निकट हैं। इसीप्रकार भूधरसाहित्य और सन्तसाहित्य में अति समीपता है; परन्तु वे दोनों अपने आप में कुछ वैशिष्ट्य भी रखते हैं अतः दोनों को एक नहीं माना जा सकता है। I - 1. जैनदर्शन और कबीर : एक तुलनात्मक अध्ययन जैन साध्वी डॉ. मंजुश्री, पूना विश्वविद्यालय की पी एचडी उपाधि के लिए स्वीकृत शोध प्रबन्ध, आदित्य प्रकाशन, नई दिल्ली । 2. मध्यकालीन संत कवियों और जैन धर्म कवियों का तुलनात्मक अध्ययन डॉ. मंजु वर्मा, आगरा विश्वविद्यालय द्वारा स्वीकृत शोध प्रबन्ध । -
SR No.090268
Book TitleMahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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