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एक समालोचनात्मक अध्ययन
421 इस प्रकार भूधरदास के साहित्य में अनेक नैतिकविचार दृष्टिगत होते हैं। इन विचारों को जीवन (आचरण) में उतारकर ही व्यक्ति, समाज, देश और विश्व में सुख-शान्ति स्थापित की जा सकती है और मानसिक कष्टों (मोह-रागद्वेष आदि विकारी भावों) से छुटकारा पाया जा सकता है।
भूधरदास द्वारा वर्णित समग्र दार्शनिक धार्मिक एवं नैतिक विचारों का उद्देश्य मानव की मिथ्यात्व, क्रोध, मान, माया, लोभ आदि विकारी भावों से मुक्त कराकर वीतरागता एवं अतीन्द्रिय सुख प्राप्त कराना है। वीतरागता को प्राप्त आत्मा संसार, शरीर, भोगों या सम्पूर्ण भौतिक सुखों में आसक्त नहीं होता है। भेदज्ञान एवं आत्मानुभूति होने के कारण उसे स्व-पर की सच्ची पहिचान हो जाती है जिससे परद्रव्यों में स्वामित्व (एकत्व) - ममत्व - कर्तृत्व एवं भोक्तृत्व - बुद्धि समाप्त हो जाती है। दूसरे शब्दों में मिथ्यादर्शन का नाश होकर सम्यग्दर्शन प्राप्त हो जाता है । सम्यग्दृष्टि जीव समस्त रागादि विभाव भावों में हेयबुद्धि छोड़ने की मान्यता होने से व्रतादि का पालन करते हुए गृहस्थधर्म या मुनिधर्म का आचरण करता है। धर्माचरण से युक्त जीव के नैतिकता एवं सदाचार का पालन तथा अनीति, अन्याय एवं अभक्ष्य आदि का त्याग स्वत: ही (सहजरूप से) हो जाता है।
इस प्रकार भूधरसाहित्य में वर्णित दार्शनिक, धार्मिक एवं नैतिक विचार व्यक्ति के अन्तर्तम (आत्मा) को प्रकाशित करने के लिए आलोक स्तम्भ है ।। इस अद्वितीय आलोक में आत्मा वीतरागी (राग द्वेष रहित) एवं सर्वज्ञ बनकर अनन्त सुखी (निराकुल) एवं कृतकृत्य हो जाता है। वस्तुतः यही मानवजीवन का चरम लक्ष्य (मोक्ष-प्राप्ति) है।