SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 452
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 420 महाकवि भूधरदास : कवि ने समाज में सदाचार और नैतिकता की स्थापना के लिए इन सबके दोषों का विस्तृत विवेचन करके त्यागने की प्रेरणा दी है। जिनका वर्णन धार्मिक विचारों के अन्तर्गत विवेच्य दर्शन प्रतिमा' में किया जा चुका है। इसी सन्दर्भ में कवि ने कुशील की निन्दा तथा शील की प्रशंसा भी की है। ___24. मिष्ट वचन की प्रेरणा :- कटु वचन बोलने के दोष एवं मिष्ट वचन बोलने के गुणों को बताते हुए कवि का कथन है - काहे को बोलत बोल बुरे नर ! नाहक क्यों जस धर्म गमावै। कोमल वैन चवै किन ऐन, लगै कछु है न सबै मन भावै ।। तालु छिदै रसना न भिदै, न धटै कछु अंक दरिद्र न आवै। जीभ कहैं जिय हानि नहीं तुझ, जो सब जीवन को सुख पावे ॥' अत: व्यक्ति को हित-मित्त-प्रियवचन ही बोलना चाहिये। ___25. मनरूपी हाथी का वर्णन :- स्वच्छन्द मनरूपी हाथी का वर्णन करते हुए कवि भूधरदास उसे वैराग्यरूपी खम्भे से बाँधकर वश में करने की बात कहते हैं - ज्ञानमहावत डारि, सुमति संकल गहि खंडे। गुरु - अंकुश नर्हि गिनै, ब्रह्मवत्-विरख विहंडै ।। कर सिघंत-सर न्हान, केलि अघ-रज सो ठाने । करन - चपलता धरै, कुमति-करनी रति मान॥ डोलत सुछन्द पदमत्त अति, गुण - पथिक न आवत है । वैराग्य - खम्भरै बाँध नर, मन- मतंग विचरत बुरे॥ 1. (क) जैनशतक, भूघरदास, छन्द 51 से 63 (ख) पार्श्वपुराण, कलकत्ता, भूधरदास, अधिकार 9, पृष्ठ 86 2. प्रस्तुत शोध प्रबन्ध, सप्तम अध्याय 3. जैनशतक, भूधरदास, छन्द 59 से 60 4. जैनशतक, भूधरदास, छन्द 70 5. जैनशतक, भूधरदास, छन्द 61
SR No.090268
Book TitleMahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy